लेखक – जयदेव विद्रोही
जनता के ऊपर रहम करो
हे सृष्टि के रचनाकार
अपने ही उपवन को कृप्या
बर्बाद न करो तुम हे महाराज
आकुल ,व्याकुल फिरे है मानव
सर्वत्र मची है हा-हाकार
आज का दिन है प्रथम नवंबर
बचा लो बाकी का संसार
बारह लाख चट्ट कर लिए तूने
अब शांत करो यह अत्याचार
दस प्राणी संक्रमित हो जाएं
तो बैचैन हो उठता है परिवार
तेरे डर से मच जाए है
त्राहिमाम और हाहाकार
तेरे डर से बंद पड़े हैं
सब लोगों के कारोवार
कान खोल कर सुन लो भगवन
कृप्या बंद करो नरसंहार
अब तो कृपा दृष्टि दिखला दो
सहमा हुआ है यह संसार
हे कोरोना स्वामी जी महाराज
सुनो हमारी तनिक गुहार
निर्वाध निगलते जा रहे विश्व को
अरे कहां का है यह शिष्टाचार