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मोहब्बत के सुहाग का जोड़ा पहनाकर : जयदेव विद्रोही

 

 

 

लेखक:- जयदेव विद्रोही

प्यारी प्यारी प्रेयसी को जिस दिन तुम 

मोहब्बत के सुहाग का जोड़ा पहनाकर 

सात फेरे लेकर धर्मपत्नी मान लोगे

दिल की गहराइयों से मोहब्बत खुद-ब-खुद दम तोड़ देगी

तुम्हारे चौखट की दहलीजों पर

वह दिन उसकी कालरात्रि बन जाएगी

सच मानो तभी तो यह उसका नया जन्म होगा

एक कर्तव्य परायण धर्मपत्नी के रूप में प्रेयसी की

उछल कूद और नखरे शनै: शनै: घायल होकर पिस जाएगी

दफन भी हो जाएंगी और दिनचर्या की पनचक्की बन अभ्यस्त हो कर रह जाएगी

बेचारी धर्मपत्नी जिसके आगे खड़ी रहेगी सदा समस्याएं ही समस्याएं

खाली गैस सिलेंडर लूण ,तेल ,लकड़ी या खाली पतीली सूना चूल्हा

और बच्चों की चीखो पुकार एवं सास-ननद की बेसुरी तान

तभी तो स्पष्ट अंतर समझ पाओगे नटखट प्रेयसी और पत्नी के बीच का 

लघु कविता

मुहब्बत को सुहाग का जोड़ा पहनाओ
मुहब्बत खुद-ब-खुद मर जाएगी
और जी उठेंगी हजारों जिम्मेदारियां
हसरतें पहले घायल होने लगेंगी
फिर शनै: शनै: स्वयं दफन हो जाएंगी

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