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विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीन विशिष्ट अंग हैं : विपिन सिंह परमार

 

 

शिमला(ब्यूरो):- गुजरात राज्य के केवडिया में आयोजित 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में “विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य सामंजस्यपूर्ण समन्वय-जीवंत लोकतंत्र का आधार” विषय पर अपने विचार रखते हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष विपिन सिंह परमार ने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीन विशिष्ट अंग हैं।  प्रत्येक अंग के संबंधित क्षेत्र में अपने-अपने कार्य हैं और प्रत्येक अंग को संविधान में शक्ति प्राप्त हैं। संविधान प्रत्येक अंग की भूमिका, कार्यों और सीमाओं को परिभाषित करता है। किसी विशेष अंग में शक्ति केंद्रित न हो इस उद्देश्य से प्रत्येक अंग के अन्त: संबंध नियंत्रण एवं संतुलन हेतु संविधान द्वारा मापदंड निर्धारित किए गए हैं।

  परमार ने कहा कि प्रभावी प्रशासन की प्रक्रिया में तीनों अंग स्वतन्त्र कार्य करते हैं तथापि कई कार्यों में वे एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। स्वस्थ परंपरा के लिए तीनों में सामंजस्य होना आवश्यमभावी है। परमार ने कहा कि तीनों अंगों के मध्य टकराव से न केवल राजनैतिक व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है बल्कि इससे उनकी प्रतिष्ठा तथा विश्वसनीयता भी कम हुई है। इसलिए स्वस्थ परंपराओं को पोषित और विकसित किए जाने की आवश्यकता है ताकि समतावादी समाज की स्थापना से तीनों अंगों में सामंजस्य पूर्ण समन्वय हो।

 उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पिरामिड के तीनों किनारों के समान है। जब तक तीनों अंग लोगों की समृद्धि के लिए पूरक संस्थाओं के रूप में सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम नहीं करते तब तक वह हमारे संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकेंगे।   परमार ने अपने संबोधन में कहा कि जन-कल्याण को ध्यान में रखते हुए हम सब मिलकर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की सामंजस्यपूर्ण कार्य प्रणाली के लिए परिस्थितियों का निर्माण करें। इस दृष्टिकोण से निर्दिष्ट कार्यों को करते समय प्रत्येक अंग के बीच किसी भी टकराव का कोई कारण नहीं है क्योंकि तीनों के लक्ष्य समान हैं जो कि समाज के लाभ के लिए संविधान के उद्देश्य को प्राप्त कर रहे हैं।

 

सम्मेलन को संबोधित करते हुए परमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधान सभा देश की प्रथम विधानसभा है जहां उच्च तकनीक युक्त ई-विधान प्रणाली का 4 अगस्त, 2014 को शुभारंभ हुआ है।  e-vidhan प्रणाली कागज रहित तथा पर्यावरण मित्र प्रणाली है जिसके लागू होने से जहां हजारों वृक्ष प्रत्येक वर्ष कटने से  बचेंगे वही कार्य में पारदर्शिता तथा दक्षता आई है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में ई-विधान प्रणाली लागू होने के उपरान्त ऑनलाइन कार्य चल रहा है।

 परमार ने कहा कि सत्र के दौरान कागज का इस्तेमाल वर्जित है जबकि  सदस्यों की सुविधा के लिए टचस्क्रीन ई- बुक, टाइम मैनेजमेंट ऐप, डिस्प्ले वॉल पेनलज तथा ई-वोटिंग व ई-नोट्स की व्यवस्था की गई है। सदन की समितियों का कार्य भी कागज रहित किया गया है तथा मीटिंग का एजेंडा व संबंधित विभागों के उत्तर भी ऑनलाइन हासिल किए जा रहे हैं। ई-निर्वाचन क्षेत्र प्रबंधन के लागू होने से जहां विधायक अधिकारियों तथा जनता से सीधा संवाद कर सकते हैं वहीं कार्य प्रगति तथा अधिकारियों द्वारा उस पर लिए गए निर्णयों को भी मोबाइल ऐप तथा एम0एल0ए0 डायरी के माध्यम से उसका अवलोकन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सदन में किसी भी विषय पर सार्थक चर्चा करने हेतु विधायकों के सहायतार्थ नॉलेज बैंक एवं रेफरेसिंज की व्यवस्था की गई है। माननीय सदस्यों के लिए उच्च तकनीक युक्त प्रशिक्षण कक्ष और ई-सुविधा केंद्र की व्यवस्था की गई है।

   सम्मेलन को संबोधित करते हुए परमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में धौलाधार के आंचल में पर्यटन नगरी धर्मशाला स्थित तपोवन में प्रदेश विधानसभा का दूसरा भवन है।  इस भवन का इस्तेमाल सिर्फ शीतकालीन सत्र के आयोजन के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा कि तपोवन भवन आकर्षक तथा रमणीय स्थल पर बना है। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि इस भवन में राष्ट्रीय ई-विधान अकादमी की स्थापना की जाए ताकि यहां पर माननीय सासदों, अन्य राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों, केंद्र सरकार व  राज्य सरकारों के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जा सके व इस भवन का उचित इस्तेमाल भी किया जा सके।

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