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1975 में आपातकाल का दर्द अचानक फिर छलक आया

हिमवंती मीडिया /पावंटा साहिब

1975 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आपातकाल लगाकर समस्त विपक्ष के नेताओं को जेल में ठोक दिया था। आज इस वर्ष भी 25 जून को काला दिवस भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा मनाया गया । 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर लोकतंत्र की हत्या कर दी गई थी। पावंटा साहिब में भी भाजपा नेताओं ने इस दिन को भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद और लोकतांत्रिक बताया आपातकाल के कारण समस्त चुनाव स्थगित हुए थे। और सभी नागरिकों अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। समाचार पत्रों पर भी अंकुश लगा दिया गया था। विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं मुरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी ,जयप्रकाश नारायण चंद्रशेखर आदि सभी लोगों को जेल भेज दिया गया था। हिमाचल से भी शांता कुमार समेत कई लोगों को जेल भेजा गया। जिनमें जिला सिरमौर से पूर्व मंत्री श्यामा शर्मा ,पूर्व एम एल ए जगत सिंह नेगी, पूर्व एम एल ए, श्रीराम जख्मी तथा ईश्वर चंद गुप्ता एडवोकेट शामिल थे। डॉक्टर प्रेम गुप्ता जुगल किशोर तथा ओंकार सिंह को भी पावंटा साहिब से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया था।

इस बार भाजपा मंडल ने काफी प्रभावशाली ढंग से 25 जून का दिवस रोष स्वरूप काले दिवस के रुप में मनाया, लेकिन उन सभी लोगों को भूल गए जिन्होंने आपातकाल में जेल की सजा काटी थी। अधिकांश नेता तो ईश्वर को प्यारे हो गए हैं, लेकिन कुछ नेता जो उस समय तत्कालीन सरकार की आंख की किरकिरी बने थे, उन्हें वर्तमान भाजपा ने भी भुला दिया है और उनकी कोई खोज खबर ना रखकर ना ही उन्हें सम्मानित किया और ना ही अपने प्रेस विज्ञप्ति में उनका नाम भी दर्ज करना उचित समझा। इससे कुछ भाजपाई ने भारी रोष है। अपना रोष प्रकट करते हुए दिग्गज भाजपा नेता हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट एसएस मित्तल ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा है कि आपातकाल के समय में जिन्होंने यातनाए सही उन्हें भुला पाना किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने भाजपा नेताओं को सलाह दी कि जिन नेताओं ने खून पसीने से पार्टी को सींचा है। उनकी उपेक्षा करना किसी भी तरह उचित नहीं है। गौरतलब है कि भाजपा मंडल ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में आपातकाल में जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले जिला सिरमौर के भाजपाइयों तक को भी याद करने की जहमत नहीं उठाई।

आज भी जगत सिंह नेगी जिन्हें बाद में आपातकाल में जेल में रहने के कारण एक विशेष पेंशन से नवाजा था, अब उनके जाने के बाद उनकी पत्नी वह पेंशन पा रही है। भाजपाइयों को उस समय उन्हें तो सम्मानित करना ही चाहिए था। लेकिन सत्ता के नशे में वासिता को भूलकर नए नए चेहरे भी सामने आ गए हैं। उन्होंने पुराने भाजपाइयों को मानो भुला ही दिया है।

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