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लगातार 3 बार प्रधानमंत्री पद को जिन्होंने सुशोभित किया अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। वे जीवन भर राजनीति में सक्रिय रहे। लाल नेहरू के बाद अटल बिहारी बाजपेयी ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला। वह भारत के सबसे सम्माननीय और प्रेरक राजनीतिज्ञों में से एक रहे। वाजपेयी ने कई विभिन्न परिषदों और संगठनों के सदस्य के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं। वाजपेयी एक प्रभावशाली कवि और प्रखर वक्ता थे। एक नेता के तौर पर वे अपनी साफ छवि, लोकतांत्रिक, और उदार विचारों के लिये जाने गए । सन 2015 मे उन्हे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ। वह अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी के सात बच्चों में से एक थे। उनके पिता एक विद्वान और स्कूल शिक्षक थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वाजपेयी लक्ष्मीबाई कॉलेज और कानपुर में डीएवी कॉलेज चले गए। यहां से उन्होंने अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने लखनऊ से आवेदन भरा लेकिन अपनी पढ़ाई जारी नहीं कर पाए। उन्होंने आर.एस.एस. द्वारा प्रकाशित पत्रिका में बतौर संपादक नौकरी कर ली। हालांकि उन्होंने विवाह नहीं किया लेकिन उन्होंने बी एन कौल की दो बेटियों नमिता और नंदिता को गोद लिया। वाजपेयी की राजनैतिक यात्रा की शुरुआत एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण वह अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। इसी समय उनकी मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई, जो भारतीय जनसंघ यानी बी.जे.एस. के नेता थे। उनके राजनैतिक एजेंडे में वाजपेयी ने सहयोग किया। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते मुकर्जी की जल्द ही मृत्यु हो गई और बी.जे.एस. की कमान वाजपेयी ने संभाली और इस संगठन के विचारों और एजेंडे को आगे बढ़ाया। सन 1954 में वह बलरामपुर सीट से संसद सदस्य निर्वाचित हुए। छोटी उम्र के बावजूद वाजपेयी के विस्तृत नजरिए और जानकारी ने उन्हें राजनीति जगत में सम्मान और स्थान दिलाने में मदद की। 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। दो वर्ष बाद उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए वहां की यात्रा की। भारत पाकिस्तान के 1971 के युद्ध के कारण प्रभावित हुए भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक रिश्ते को सुधारने के लिए उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा कर नई पहल की। जब जनता पार्टी ने आर.एस.एस. पर हमला किया, तब उन्होंने 1979 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने की पहल उनके व बीजेएस तथा आरएसएस से आए लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत जैसे साथियों ने रखी। स्थापना के बाद पहले पांच साल वाजपेयी इस पार्टी के अध्यक्ष रहे। सन 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को सत्ता में आने का मौका मिला और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री चुने गए। लेकिन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाने के कारण सरकार गिर गई और वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से मात्र 13 दिनों के बाद ही इस्तीफा देना पड़ गया। सन 1998 के चुनाव में बीजेपी एक बार फिर विभिन्न पार्टियों के सहयोग वाला गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के साथ सरकार बनाने में सफल रही पर इस बार भी पार्टी सिर्फ 13 महीनों तक ही सत्ता में रह सकी, क्योंकि ऑल इंडिया द्रविड़ मुन्नेत्र काजगम ने अपना समर्थन सरकार से वापस ले लिया। वाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कराए। 1999 के लोक सभा चुनावों के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एन. डी. ए.) को सरकार बनाने में सफलता मिली और अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। इस बार सरकार ने अपने पांच साल पूरे किए और ऐसा करने वाली पहली गैर -कांग्रेसी सरकार बनी। सहयोगी पार्टियों के मजबूत समर्थन से वाजपेयी ने आर्थिक सुधार के लिए और निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन हेतु कई योजनाएं शुरू की। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र में राज्यों के दखल को सीमित करने का प्रयास किया। वाजपेयी ने विदेशी निवेश की दिशा में और सूचना तकनीकी के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा दिया। उनकी नई नीतियों और विचारों के परिणाम स्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था ने त्वरित विकास हासिल किया। पाकिस्तान और यूएसए के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते कायम करके उनकी सरकार ने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया। हालाँकि अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीतियां ज्यादा बदलाव नहीं ला सकीं, फिर भी इन नीतियों को बहुत सराहा गया। अपने पांच साल पूरे करने के बाद एन. डी.ए. गठबंधन पूरे आत्मविश्वास के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 2005 के चुनाव में उतरा पर इस बार कांग्रेस के नेतृत्व में यू.पी.ए. गठबंधन ने सफलता हासिल की और सरकार बनाने में सफल रही। दिसंबर 2005 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रीय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। वाजपेयी समस्त जीवन अविवहित रहे। उन्होंने राजकुमारी कौल और बीएन कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को गोद लिया था। सन 2009 में उन्हे दौरा पड़ा था, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही गया। 11 जून 2018 को उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहाँ 16 अगस्त 2018 को वे परलोक सिधार गये। 17 अगस्त को उनकी दत्तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्या ने उन्हें मुखाग्नि दी। राजघाट के पास शान्ति वन में स्मृति स्थल में उनकी समाधि बनायी गयी है। देश के लिए अपनी अभूतपूर्व सेवाओं के चलते उन्हें वर्ष 1992 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया।

सिमटती भाजपा राज्य हाथ से निकलने का सिलसिला जारी

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भागीदारी के लिए सरकार प्रयासरत-डॉ0 बिंदल