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सिमटती भाजपा राज्य हाथ से निकलने का सिलसिला जारी

झारखंड विधानसभा चुनावों के नतीजों से यह बात साफ हो चुकी है कि इन चुनावों पर भाजपा सरकार की नागरिकता संशोधन कानून का कोई असर नहीं पड़ा। क्योंकि संसद में यह विधेयक पास होने के बाद ही तीन चरणों के चुनाव बाद में ही हुए लेकिन इसका कोई असर दिखाई नहीं दिया। एनआरसी-नागरिकता कानून से भाजपा को झारखंड में भारी नुकसान उठाना पड़ा। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र और अब झारखंड में भी अपनी सत्ता गंवा दी है। हरियाणा में भाजपा जोड़-तोड़ कर चाहे सरकार बनाने में कामयाब हो गई हो लेकिन एक साल में ही 5 राज्यों की सत्ता हाथ से गंवाने का दंश झेल रही है। इस एक साल में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र व झारखंड में भाजपा सत्ता से दूर हो चुकी है हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेय का सुपड़ा साफ हो गया था लेकिन उसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता खोने के बाद भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। झारखंड में पार्टी का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब 17 प्रतिशत कम हुआ है। यह भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। झारखंड चुनाव परिणाम में भाजपा नेतृत्व को सोचने के लिए विवश कर दिया है। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर चल रही देश व्यापी चर्चा के बीच पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है जबकि चुनाव ऐसे समय में हुए जब राम मन्दिर के पक्ष में उच्चतम न्यायालय का आदेश आया वहीं जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त करके भाजपा पार्टी और सरकार ने देश को एक बड़ा संदेश भी दिया। अब दिल्ली, बिहार और पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और इन तीनों राज्यों में ही भाजपा के पास कोई करिश्माई स्थानीय नेता नहीं है। भाजपा की मजबूरी है कि उसे मोदी के चेहरे को सामने रखकर ही चुनाव मैदान में कूदना पड़ेगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे और तभी चुनाव में उतरना होगा। लोकसभा चुनावों के नतीजे देखकर ही भाजपा को दिल्ली चुनावों में उतरना बड़ी भारी भूल होगी क्योंकि झारखंड में 6 माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 14 में से 12 सीटें मिली थी लेकिन अब विधानसभा चुनाव में उन्हें 81 सीटों में से मात्र 25 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी। यही नहीं प्रदेश अध्यक्ष तथा मुख्यमंत्री तक अपनी सीट बचाने में नाकामयाब हुए। वर्ष 2017 में अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से भाजपा गठबंधन को चाहे 325 सीट दिलाने में कामयाबी पा ली हो लेकिन उसके बाद अरूणाचल, तिरूपुरा के अलावा भाजपा एक के बाद एक विधानसभा चुनाव हारती गई। भाजपा ने बिहार कर्नाटक हरियाणा, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड व गोवा में चाहे सरकारें बना ली हों लेकिन सभी जोड़तोड़ के दम पर बनी हैं। कर्नाटक में तो पार्टी को जनता दल और कांग्रेस की फूट का लाभ मिला वहीं बिहार में भी नीतिश कुमार ने राजद का साथ न छोड़ा होता तो भाजपा की सरकार वहॉं भी नहीं बन पाती। इन सब परिस्थितियों में अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए भाजपा को धरातल पर उतरना होगा और जो अहंकार और आत्म विश्वास बिला वजह चरम सीमा तक बढ़ गया था उससे परहेज करना होगा।

आक्शी

लगातार 3 बार प्रधानमंत्री पद को जिन्होंने सुशोभित किया अटल बिहारी वाजपेयी