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गिरीपार क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया गया बुढ़ी दिवाली पर्व

पांवंटा साहिब, ( सुन्दर चौहान )
गिरीपार क्षेत्र में बुढ़ी दिवाली मनाई जा रही है। करीब एक सप्ताह तक चलने वाली यह दिवाली बड़े धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। दीपावली के एक महीने बाद इस क्षेत्र में बुढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है। माना जाता है की यह दिवाली पांडव काल में शुरू हुई थी। इस बारे किंवदंती यह है की महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पांडव वापिस हस्तिनापुर लोटे तो उस खुशी में लोगों ने यह पर्व मनाया था। जिसे बाद में बुढ़ी दिवाली का नाम दिया गया था,चूंकि गिरी पार का समाज कौरव पांडव प्रणाली पर आधारित है तो रिती रिवाज भी उसी समय के मनाएं जाते हैं। गिरीपार में पांडव काल से चली आ रही बहुपति प्रर्था अभी तक है। लोग शाठी ओर पाशी वर्णो में बंटे हुए हैं जिसका संबंध कौरव पांडव से है। बुढ़ी दिवाली की शुरूआत मशाले जलाकर की जाती है। लोग एक जगह पर एकत्रित होकर हाथ में मशाल लिए सांझे आंगन पंहुचते है जहां पर सामुहिक नृत्य होता है। इस दौरान सभी लड़कियां माइके आती है जो भियुंरी नृत्य करती है। भिंयुरी इस दिवाली का एक मशहूर गीत है जो एक ऐसी लड़की पर गया जाता है,जो दिवाली पर मायके नहीं आई होती है,उसकी बुढ़ी मां को उसकी बहुत याद आती है वह राह ताकती रहती है और आने जाने वाली लड़की से अपनी बेटी के न आने का कारण पूछती रहती है। यह गीत बहुत ही मार्मिक है जो हर आदमी को गमगीन कर देता है। लोग अपने घरों में पारंपरिक पकवान बनाकर खुशीयों का इजहार करते हैं। इस दिवाली पर बेढोली असकली पटांडे बनाए जाते हैं। लोग आपस में मुंडा शाकुली अखरोट बांटते हैं। और खुशीयां मनाते हैं।

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