आखिरकार चार दिन के बाद महाराष्ट्र में भाजपा के दोबारा सत्तासीन हुए मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को इस्तीफा देने के लिए मज़बूर होना ही पड़ा और सम्पादकीय लिखे जाने के समय वह अपनी गद्दी छोड़कर एक ओर हो लिये। लेकिन जिस तरह प्रजातंत्र का मजाक उड़ाया गया वह काफी दिनों तक याद रखा जाएगा। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में चुनाव से पहले दो प्रमुख गठबंधन मैदान में उतरे थे जिनमें एक गठबंधन शिवसेना व भाजपा का था तथा दूसरा प्रमुख गठबंधन कांग्रेस व एनसीपी का था। महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा और शिव सेना गठबंधन के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दे दिया था। जहॉं भाजपा को कुल 288 सीटों में से 105 सीटों पर कामयाबी मिली थी वहीं उसके सहयोगी शिवसेना को भी 56 सीटें मिल गई थी। इस तरह जनता ने इस गठबंधन पर अपनी स्पष्ट मोहर लगा दी थी। दोनों ही दल समान विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं और दोनों ही एक-दूसरे से बढ़कर अपने आपको हिन्दुओं का मसीहा बनने पर तत्पर रहते है। लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में खींचतान होने लगी । भाजपा यद्यपि उप मुख्यमंत्री सहित अन्य मलाईदार मंत्रालय भी शिवसेना को देने के लिए तैयार हो गई थी लेकिन शिवसेना किसी भी हाल में ढाई साल तक मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होने की जिद्द लगा बैठी थी। शिवसेना की जिद्द के आगे भाजपा ने घुटने नहीं टेके तो शिवसेना ने आनन-फानन में एनसीपी व कांग्रेस के साथ मिल बैठकर सत्ता का सुख चखने की दिशा में कार्यवाही शुरू कर दी जबकि उन तीनों दलों की विचारधारा एक दूसरे से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती। कांग्रेस जहॉं धर्मनिरपेक्षता की नीति का पक्षधर होने की बात करती है वहीं शिवसेना कट्टर हिन्दुत्व की बात करती रही है लेकिन चार दिन पहले इसी कवायद में यह तीनां पार्टियां सरकार बनाने के लिए बैठकें ही करती रही लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुॅंची तो चार दिन पहले भाजपा ने वह कर दिया जैसा नोटबंदी करते हुए किया था। रात में एनसीपी के अध्यक्ष को प्रदेश अध्यक्ष व एनसीपी विधानमंडल के नेता अजीत पंवार को भी रात के अंधेरे में अपने पक्ष में कर आनन-फानन में अपनी सरकार बना ली और देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो गये वहीं उप मुख्यमंत्री पद का लोलीपॉप एनसीपी विधायक दल के नेता अजीत पंवार को दे दिया। लेकिन बात यहीं नहीं रूकी, यह सारा मामला इतना गोपनीय हुआ कि एनसीपी प्रमुख शरद पंवार को भी इसकी भनक नहीं लगी। भाजपा एनसीपी की सरकार के गठन के बाद एनसीपी सुप्रीमों हरकत में आए तो उन्होंने एनसीपी विधायकों को इक्ट्ठा करने की सोची और वह 3 दिन के मैराथन के बाद 54 में से 53 विधायकों को अपने पाले में लाने में कामयाब हुए वहीं शरद पंवार ने अमित शाह की रणनीति को पछाड़ते हुए कांग्रेस और शिवसैनिकों को भी टूटने नहीं दिया और शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में तीनों दलों को एक मंच पर लाने में कामयाब हुए। अब तीन रोज से लगातार दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे । मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक गया और अदालत को जल्द से जल्द विधानसभा पटल पर बहुमत सिद्ध करने का आदेश देना पड़ा। इस सारे घटनाक्रम में राज्यपाल की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही लेकिन आखिर आज पहले पवांर व फिर फडणवीस के इस्तीफे से मामला साफ हुआ और अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एनसीपी व कांग्रेस के सहयोग से महाराष्ट्र की यह सरकार बनने जा रही है लेकिन यह बेमेल की सरकार कितने दिन चल पाएगी यह भविष्य के गर्त में छुपा हुआ है।