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तारीख पर तारीख निर्भया की मॉं का दर्द छलका

निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड व हत्या को हुए 7 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन आज तक अपराधियां को सजा नहीं मिली है। इस सामूहिक दुष्कर्म कांड में जिसमें पीड़िता की वारदात के कुछ दिन बाद मौत भी हो गई थी, इस वारदात में 6 दोषी थे जिनमें से एक दोषी नाबालिक था जिसे 2 साल बाल सुधार गृह में बीताने का ही आदेश अदालत से दिया गया था और वह आज भी देश के किसी न किसी कोने में आज़ाद जिन्दगी जी रहा है। एक अपराधी ने ग्लानीवश जेल में आत्महत्या कर ली थी, शेष चार दोषियों को अभी तक हमारा कानून सजा नहीं दे पाया है यह सबसे बड़ी बिडम्बना है। जिस समय यह वारदात हुई उस समय पूरा देश इस कांड से पूरी तरह मर्मांहत था और पूरा देश अपराधियों के खिलाफ एक राय से गुस्से में था और उस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन हमारे देश की कानून व्यवस्था में कितना लचीलापन है उसका फायदा उठाकर आज तक ये दोषी सजा पाने से बचते आ रहे हैं। यहॉं तक कि सक्षम अदालत द्वारा डेथ वारंट जारी करने के बावजूद भी दोषियों को सजा नहीं मिल पा रही है इससे हमारी अदालती कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।  पीड़ित परिवार के दर्द का एहसास वही कर सकता है जो इस पीड़ा से स्वयं गुजरा हो। अभी डेथ वारंट जारी होने के बावजूद भी अपराधियों को सजा नहीं मिल रही है इससे आहत होकर जब पीड़िता की मॉं ने कहा कि -हमने तो कोई अपराध नहीं किया उसके बावजूद हमें लगातार 7 साल से सजा मिल रही है और दोषी आराम से सरकारी मेहमान बने हुए हैं। पीड़ित मॉं के इन शब्दों को अगर गहराई से देखा जाए जिसमें उन्होंने कहा कि पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से वह अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए छोटी-बड़ी व देश की सर्वोच्च अदालत के चक्कर लगा-लगाकर थक हार गई है और उच्चतम न्यायालय से दोषियों का दोष सिद्ध होने व उन्हें फांसी दिये जाने के निर्णय के बावजूद अभी तक इन दोषियों को क्यों फांसी नहीं दी जा रही है यह उनके लिए बहुत पीड़ादायक है।  हमारीन्याय प्रणाली में खामियां बहुत हैं इनको दूर करना ही होगा वरना कानून व्यवस्था से आम आदमी का विश्वास पूरी तरह हट जाएगा ।लगभग दो वर्ष पहले जब उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी बाकी चार अपराधियों को सामूहिक बलात्कार जिसमें पीड़िता की जान भी चली गई थी, को उच्चतम न्यायालय द्वारा सजाए मौत दी गई थी तो उसके बावजूद कानून दांवपेंच की वज़ह से यह चारों दरिन्दे फांसी के फंदे पर नहीं झूल पाए हैं।अदालत ने 22 जनवरी 2020 को सुबह सात बजे के लिए डेथ वारंट भी जारी कर दिया था लेकिन इसके बावजूद कानूनी दावपेंस के चलते जिस तरह अदालत को 1 फरवरी 2020 के सुबह 6 बजे के डेथ वारंट जारी करने को बाध्य होना पड़ा उससे कई सवाल खड़े हो गये हैं।इस समय भी अपराधी तिकड़म भी ड़ाने में व्यस्त हैं और एक ही मुद्दे को बार-बार उठा रहे हैं।नये मामले में एक दरिंदे ने अपने आपको नाबालिग होने का हवाला दिया। इसे भी सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।हालांकि यह मसला निचली अदालत से हाईकोर्ट तक पहले ही उठ चुका था।बचाव पक्ष इस तरह इस मामले में दोषियों को जो बचाने में नये-नये हथकंडे अपना रहा है उसकी भी भर्त्सना की जानी चाहिए।आखिर बचाव पक्ष को उस परिवार और उस मॉं को भी देखना चाहिए जो बिना गुनाह किये 7 वर्षों से न्याय के लिए दिन-रात एक कर भटक रही है। उम्मीद की जा रही है कि अब आने वाली 1 फरवरी को इन दरिदां को अवश्य ही फांसी के झूले पर लटका दिया जायेगा और तभी जहॉं परिवार व मॉं बाप को संतुष्टि मिलेगी वहीं समाज में भी एक नया संदेश जाएगा।

वर्ष : 24 अंक : 04

अर्शप्रीत