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पूनम गोयल

एक गृहिणी से अचानक किसी विद्यालय का प्रशासक बनना आसान नहीं है। वह भी तब, जब सारा भार ही अपने कंधों पर हो, लेकिन विलक्षण प्रतिभा की धनी पूनम गोयल महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत से कम नहीं है।17 अक्टूबर 1957 को देहरादून के एक मशहूर कारोबारी राधेश्याम गर्ग के घर चन्द्रेश रानी की कोख से जन्म पूनम के एक बड़ी बहन व दो छोटे भाई है। बड़ी बहन मधु हरिद्वार में ओम कुमार मित्तल से ब्याही हैं। वहीं इनके दो भाई सुनील व संजय थे। संजय का जनवरी 2017 में निधन हो गया है जबकि सुनील देहरादून के नामी गरामी व्यवसायी हैं।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा सरस्वती शिशु मन्दिर स्कूल देहरादून से शुरू हुई। प्राइमरी की शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्होंने महावीर जैन कन्या पाठशाला से कक्षा 10$2 तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद महादेवी स्नातकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उच्च स्नातक की शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद वैवाहिक बंधन में बंध गई।
इनकी बचपन की मित्रों में रेखा व उषा रही हैं। इनका कहना है कि इन्हें सबसे अधिक स्नेह अपने पिता से मिला और स्वयं यह पूरे परिवार से ही स्नेह करती हैं। अपने आदर्श पुरूष का दर्जा अपने पिता को व आदर्श महिला का दर्जा अपनी माता को देती हैं। अंग्रेजी की अध्यापिका सुदेश व हिन्दी की अध्यापिका मिसेज़ नौटियाल व संस्कृत की अध्यापिका मिसेज़ बिमला को अपनी आदर्श शिक्षकों में मानती हैं। इनकी माता ने इन्हें एक आदर्श गृहिणी के सभी गुण दिये और अपनी ससुराल में आकर इन्होंने पूरे परिवार की चहेती बनने में सफलता हासिल की।
इनका विवाह 8 फरवरी 1977 को सहारनपुर निवासी एक प्रसि( चौधरी परिवार के कारोबारी अरविन्द गोयल से हुआ। जिनका सहारनपुर के साथ -साथ हिमाचल में भी कारोबार चलता था। इनके पति हिमाचल शादी से पहले ही कारोबार में व्यस्त थे और यह अपनी ससुराल सहारनपुर में यह संयुक्त परिवार में रहती थी। ससुर का भी जल्द ही देहान्त हो गया था। और शादी के साल के अन्दर ही इन्हें एक पुत्र रतन की खुशी हुई लेकिन वह खुशी ज्यादा दिन तक नही रूकी। 10 माह का बेटा गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गया और पूर्णतया अपाहिज़ हो गया। उसका मानसिक विकास बिल्कुल रूक गया और यह पीर पैंगम्बरों के घर -घर भटकी और उन सभी अस्पतालों में गई जहॉं भी किसी ने बताया। लेकिन बीमारी इतनी गंभीर थी कि वह ठीक हो ही नहीं सकता था। लेकिन अपने ज़िगर के टुकड़े को बरसों अपनी छाती से चिपकाये रखा। लेकिन आठ साल बाद देहरादून के चशायर होम में भर्ती करने को मज़बूर होना पड़ा क्योंकि 1980 -1982 में इनके दो पुत्र और हो गये थे और उनके लालन-पालन में कठिनाई उत्पन्न हो रही थी।
पूनम मैम को शुरू से ही बेटी की चाह थी तो उन्होंने शादी के 14 वर्ष बाद एक कन्या की मॉं बनने की ठानी लेकिन ईश्वर की माया कोई नहीं जानता, चौथी सन्तान के रूप में भी इनके यहॉं पुत्र ने ही जन्म लिया।पति घर से दूर रहते थे और महीने में 2-3 बार से अधिक घर नहीं आ पाते थे। लेकिन संयुक्त परिवार में रहकर इन्होंने अपनी संतानों को जहॉं एक अच्छी शिक्षा दी वहीं एक आदर्श पारिवार बहु का भी दायित्व निभाया। सास व ससुर का तो इनकी शादी के कुछ वर्ष बाद ही देहान्त हो गया था लेकिन अपनी दादी सास की यह काफी लगाव था और वह भी इन पर जान छिड़कती थी इसलिए 18 वर्ष इन्होंने संयुक्त परिवार में रहकर ही गुजारे। वर्ष 1992 में इनके चचायर होम में भर्ती बेटे का देहान्त हो गया और वर्ष 1994 में जब दादी मॉं का भी देहान्त हो गया तो फिर इन्होंने भी पति के पास पांवटा साहिब आकर रहने की सोची। उस समय छोटा पुत्र केवल 3 वर्ष का था और बड़े दोनों बेटे क्रमशः कक्षा 8 व कक्षा 6 में अध्ययनरत थे।
पूनम चूंकि शुरू से ही संयुक्त परिवार में रहने की आदी थी तो इन्हें अपना अकेले परिवार चलाना अखरा लेकिन इन्होंने अपने आपको व्यस्त रखने के लिए अपने पति से एक विद्यालय खोलने की इच्छा जताई। पति को भी शायद इन पर विश्वास था इसलिए उन्होंने भी आनन-फानन हिलव्यु पब्लिक स्कूल का नाम एक स्कूल अपने माता-पिता की याद में बनाई गई सोसायटी के अन्तर्गत माजरा में खुलवा दिया। पूनम की सोच थी कि ग्रामीण इलाके के बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाए इसलिए उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में ही अपना विद्यालय खोला। मात्र 56 बच्चों से चला विद्यालय आज इलाके की एक पहचान बन चुका है जहॉं छात्रों की अपेक्षा छात्राओं की संख्या ज्यादा है। पूनम जी को बेटियों से लगाव भी बहुत है और उन्होंने छात्राओं के लिए प्रबन्धन से पिछले 25 वर्षों में न तो कभी किसी मानदेय की इच्छा जताई और न ही किसी ओर तरह की जरूरतें बताई लेकिन लगभग 5 वर्ष पूर्व इन्होंने जब यह देखा कि लोग छात्राओं की बजाए छात्रों को तो अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं और छात्राओं को अच्छी शिक्षा देने से परहेज रखते हैं तो इन्होंने अपने स्कूल में पढ़ने वाली सभी छात्राओं के लिए निःशुल्क पुस्तकें देने व प्रवेश शुल्क में भी भारी छूट देने की मांग की तो प्रबन्धन ने भी उनके सुझाव को हाथों- हाथ लपक लिया और आज यह विद्यालय एक आदर्श विद्यालय के रूप में ग्रामीण क्षेत्र की छात्र छात्राओं की सेवा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
यही नहीं हर वर्ष 10वीं के छात्र-छात्राओं को हिमाचल सरकार द्वारा परीक्षा परिणामों में मैरिट में आने पर लैपटॉप दिये जा रहे हैं।समाज सेवी में भी पूनम जी की काफी रूचि है और वह अन्तर्राष्ट्रीय समाजसेवी संस्था लायनेस क्लब की दो बार प्रधान भी रह चुकी हैं। इनके तीनों बेटों का विवाह हो चुका है अपनी तीनों बहुओं को यह अपनी बेटी का दर्जा देती हैं। एक पौत्र व 4 पौत्रियों के प्यार ने मानों इनके बुढ़ापे को भी ठहरा सा दिया है। हर आगन्तुक का अपने हाथ से भोजन बनाकर खिलाना इन्हें खूब भाता है और इनकी पाक कला की सभी परिजन, नाती रिश्तेदार व ईष्टगण प्रशंसा करते नहीं थकते। इनका परिवार आरएसएस से प्रभावित रहा है और इनके पिता संघ के कार्यकर्ता थे। और अटल बिहारी वाजपेयी जी जब इनके घर आए थे, उस दिन को इन्होंने जश्न के तौर पर मनाया था और आज भी वह यादें इनके मन पटल पर हैं। इन्हें सबसे अधिक दुःख अपने बेटे की बीमारी के दौरान हुआ वहीं सबसे अधिक खुशी इन्हें अपने पौते के जन्म पर हुई। पूनम मैम के साथ मेरा भी लगभग 20 वर्षों से सम्पर्क है। उनमें इतने गुण विद्यमान है जो इस छोटे से ब्लॉक में समाना संभव ही नहीं है। यदि मॉं सरस्वती की कृपा रही तो मैं पूनम जी पर एक किताब अवश्य लिखना चाहूॅंगी।

नवराज

बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का पहला साल