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प्राचीन शिरगुल मंदिर में पड़वा के पर्व पर हजारो श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

राजगढ ( बी आर चौहान )-
दीपावली के पावन पर्व पर राजगढ़ से करीब 18 किलोमीटर दूर शिरगुल मंदिर शाया में हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पीठासीन आराध्य देव के दर्शन करके आर्शिवाद प्राप्त किया । उल्लेखनीय है कि इस मंदिर में दीपावली और पड़वा के पावन पर्व पर कालांतर से दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है जिसमें सिरमौर के अतिरिक्त शिमला व सोलन के हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर शिरगुल देवता का आर्शिवाद प्राप्त करते हैं जबकि इस मेले में देव दर्शन के अतिरिक्त श्रद्धालुओं कें मंनोरंजन की कोई गतिविधियां नहीं होती है । गौरतलब है कि भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल का प्रादुर्भाव लगभग एक हजार पूर्व शाया की पावन धरा पर इस क्षेत्र के शासक भूखड़ू के घर में हुआ था ।बचपन में माता-पिता के निधन के उपरांत शिरगुल और उनके भाई चंद्रेश्वर अपने मामा के घर मनौण में रहने लगे । एक दिन शिरगुल देव और चंदे्रश्वर फागू में एक खेत मे पशु चरा रहे थे और साथ ही कुछ हलधर खेत में लगा रहे थे । शिरगुल की मामी हलधर के लिए भोजन लेकर आई और साथ में शिरगुल और चंदेश्वर के लिए सतू के पिंड बनाकर लाई जिसमें मक्खी एवं अन्य कीट मिलाए हुए थे उन्होने सतू के पिंड खाने से मना कर दिया। और मामी की प्रताड़ना ने तंग आकर शिरगुल ने फागू खेत में पैर मारकर पानी की धार निकाली और जल ग्रहण करके स्वयं चूड़धार के लिए रवाना हुए थे। फागू के खेत में शिरगुल द्वारा अपने तप से निकाली पानी की धार आज भी विद्यमान है और इस जल को गंगा के समान पवित्र माना जाना है । चूड़धार में कठिन तपस्या करने के उपरंात शिरगुल देव सूत के व्यापारी बनकर दिल्ली गए जहां पर उनका युद्ध मुगल शासकों के साथ हुआ । मुगल सेना के सिपाहियों द्वारा शिरगुल की दैविक शक्ति को क्षीण करने के उददेश्य से उन पर कच्चे चमड़े की बेड़ियां लगाई और शिरगुल को कैद कर दिया गया । कारागार में शिरगुल को कैद से मुक्त करवाने में भंगायणी नामक महिला, जोकि इस कारागार में सफाई का कार्य करती थी ,ने बहुत सहायता की । भंगायणी माता ने राजस्थान के राणा गोगा जाहर वीर को संदेश पहूंचाया और गोगा ने शिरगुल को कैंद से मुक्त करवाया । शिरगुल ने भंगायणी को अपनी धर्म बहन बनाकर वापिस साथ लाए और उसे हरिपुरधार में बसा दिया जहां पर वर्तमान में भंगायणी माता का भव्य मंदिर है । शिरगुल देव स्ययं चूड़धार पहूंचे और उन्होने घोर तपस्या करने के उपरांत वही बैंकुण्ठ को चले गए । चूड़धार में शिरगुल द्वारा स्थापित शिवलिंग वर्तमान में श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जहां पर हर वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु कठिन चढ़ाई चढ़कर चूड़धार पर्वत पर पहूंचकर शिरगुल मंदिर में दर्शन करते हैं ।

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