Homeहिमवन्ती की बातसत्ता संघर्ष अभी थमा नहीं

सत्ता संघर्ष अभी थमा नहीं

हालांकि हाल ही में हुए हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में होकर उभरी है लेकिन इसके बावजूद यह परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं कहे जा सकते क्योंकि भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने भी इन चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों में ही अमित शाह के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी चुनावी मैदान में कूदने के लिए विवश होना पड़ा। दोनों ही सूबों में अपने बलबूते सरकार बनाने का जो सपना भाजपा ने देखा था वह टूटता नज़र आ रहा है। हरियाणा में कुल 90 सीटों में से 75 पार का नारा सभी भाजपा के आला नेता कर चुके थे इसके विपरीत उन्हें 40 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यही नहीं अपने आपको साफ सुथरी पार्टी कहने वाली भाजपा को भ्रष्टाचार में बंद नेता की पार्टी जजपा के साथ भी हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस पार्टी को उप मुख्यमंत्री सहित तीन अन्य मंत्री पद भी देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
महाराष्ट्र में भी आशा के अनुरूप भाजपा को जीत हासिल नहीं हुई और अब शिव सेना के साथ मिलकर जो उन्होंने चुनाव लड़ा था उस गठबंधन में भी काफी कड़वाहट आ गई है और शिव सेना व भाजपा के नेता एक दूसरे पर काफी आक्रमक हो गये हैं। भाजपा का सपना सत्ता पर किसी न किसी तरह काबिज होने का है इसलिए भाजपा शिव सेना में फूट डालने की भी इच्छुक है और भाजपा के एक राज्य सभा सांसद संजय काकड़े तो शिवसेना में तोड़फोड़ कर सरकार बनाने की इच्छा रख रहे हैं क्योंकि शिव सेना के अडियल रूख के कारण दोनों दलों में सरकार बनाने के लिए सहमति भी हो गई है। शिव सेना और भाजपा दोनों के बीच ही सत्ता को लेकर संघर्ष चरम सीमा पर पहुॅंच गया है। शिव सेना के पास सीटों का काफी कम आंकड़ा है इसके बावजूद वह सत्ता में बराबर की हिस्सेदार बनना चाह रही है और तिखी बयानबाजी कर रही है। भाजपा आलाकमान भी शिवसेना की तिखी बयानबाजी से काफी खफा है और इसीलिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपना मुम्बई दौरा भी फिलहाल रद्द कर दिया है।
शिव सेना और भाजपा के बीच जो गुथम गुथा चल रहा है उससे तो यह बात साफ हो गई है कि नई सरकार के गठन की फिलहाल कोई गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है। दोनों ही पार्टियां छोटे-छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों पर नजर लगाए हुए है और अपने -अपने स्तर पर डोरा डालने में लगे हुए हैं। शिव सेना जहाॅं सत्ता में जहाॅं बराबर की भागीदारी मानने से कम तैयार नहीं है वहीं भाजपा भी अब सी. एम. का पद शिव सेना को देने के लिए तैयार नहीं है।
यदि शिव सेना मुख्यमंत्री पद से अपनी दावेदारी छोड़ भी देती है तो भी उसकी इच्छा तो यह अवश्य लग रही है कि वह मंत्रिमंडल में अपने कुछ अधिक सदस्यों को भेजना व अहम पदों पर अपनी पार्टी के लोगों को बिठाना चाहेगी और इसीलिए पूरी सौदेबाजी चल रही है। इसी बीच एनसीपी ने भी भाजपा शिव सेना की सरकार न बनने की स्थिति में सरकार बनाने पर विचार किया जायेगा कहकर सनसनी फैला दी है चूंकि शरद पवांर तो यह कह चुके हैं कि वह शिव सेना के साथ किसी भी तरीके का गठबंधन नहीं कर सकते लेकिन एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवाब मलिक ने भाजपा के साथ बैठक करने के शिव सेना के फैसले के बाद यह बयान दिया है। इससे नये सवाल व संभावनाएं उठ खड़ी हुई हैं।

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