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उम्मीदवार अपने आप को शिक्षित कर्मठ व योग्य उम्मीदवार कह कर जनता से वोट लेकर चुनावों में जीत पाना चाहते हैं :- सनी सूर्यवंशी

 

चम्बा(प्रे.वि.):- हिमाचल में पंचायत प्रतिनिधित्व के चाहवानों की बाढ़ सी आ गई है। हर कोई इस चुनावी रण में दो-दो हाथ करने को आतुर हैं। हर स्वयंभू उम्मीदवार अपने आप को शिक्षित कर्मठ व योग्य उम्मीदवार कह कर जनता से वोट लेकर चुनावों में जीत पाना चाहते हैं।

हिमाचल में पंचायती राज चुनाव की घोषणा के साथ ही पंचायत प्रतिनिधित्व के चाहवानों की बाढ़ सी आ गई है। हर कोई इस चुनावी रण में दो-दो हाथ करने को आतुर हैं। हर स्वयंभू उम्मीदवार अपने आप को शिक्षित, कर्मठ व योग्य उम्मीदवार कह कर जनता से वोट लेकर चुनावों में जीत पाना चाहते हैं। किंतु दुर्भाग्य है कि उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं है कि जिस पद पर वे लड़ने की चाह रख रहे हैं। असल में वह कोई पद नहीं, बल्कि ग्राम स्तर पर सुधारात्मक कार्यों का दायित्व है।

अब प्रश्‍न यह है कि क्या चुनाव जीतने के पश्चात जनप्रतिनिधि सच में समाज में ग्राम स्तर पर सुधार लाने की इच्छा शक्ति रखते हैं या मात्र सिर्फ चुनाव जीतने तक ही उनकी जनता तक जवाबदेही रहती है। चुनाव के समय हर प्रत्याशी अपने पोस्टरों में पंचायतों में बदलाव लाने व विकास करने की बात तो कहता है, किंतु अगर किसी उम्मीदवार को पूछा जाए कि वह ग्राम स्तर पर बदलाव किस आधार पर लाएंगे व उनकी भविष्य के पांच वर्षों के लिए क्या योजना रहेगी। इस पर हर उम्मीदवार अपनी चुपी साध लेता है। ग्रामीण स्तर पर स्थानीय सुशासन किस तरह से स्थापित किया जाए इस संबंध में कोई योजना का आधार बिरले ही प्रत्याशियों या प्रतिनिधियों के पास देखने को मिलता है।

क्या पंचायत चुनाव में खड़े उम्मीदवारों के पास ग्रामीण स्तर पर किए जा सकने वाले कार्यों के लिए किसी योजना की कोई रूपरेखा है। जिसमें ग्राम स्तर पर पुस्तकालय निर्माण, शिक्षा व स्वास्थ्य संबंधी सुधार, भूमि सुधार, कृषि सुधार, लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, गरीबी उन्मूलन, पशुपालन ग्राम स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं एवं मत्स्यपालन, महिला एवं बाल विकास संबंधी कार्य व समाज के कमजोर वर्ग व वृद्ध, विकलांग व मानसिक रोगियों की समृद्धि संबंधी कोई योजना हमारे पंचायत स्तर पर खड़े उम्मीदवारों के पास है।

अगर नहीं तो हम कैसे मान लें कि यह चुनाव ग्राम स्तर पर स्वशासन द्वारा सुशासन लाने के लिए लड़े जा रहे हैं। ग्राम स्तर पर स्वछता, शिक्षा व स्वास्थ्य संबंधी सुधार करने के लिए क्या योजना होनी चाहिए। इस तरह के सवालों का जवाब ज्यादातर पंचायत में खड़े उम्मीदवारों के पास नहीं मिलेगा, क्योंकि वह ग्राम स्तर के कार्यों से असल में परिचित ही नहीं है।

जनता को पंचायत चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से सवाल करना चाहिए जो वोट मांगने के लिए जनता के बीच आते है कि वह किस आधार पर भविष्य के 5 वर्षों में पंचायत स्तर पर विकासात्मक कार्य करेगा एवं पंचायत स्तर पर बदलाव लाएंगे तथा उसकी रूपरेखा क्या होगी।

हिमाचल पंचायत चुनावों में कुछ एक ही गिने चुने उम्मीदवार होंगे, जो पांच वर्षों के लिए घोषणापत्र तैयार करके चुनाव लड़ रहे हैं, अन्यथा ज़्यादातर उम्मीदवार तो इस चुनावी पर्व में मात्र अपनी किस्मत को आजमा रहे हैं। महिला आरक्षित सीटों में भी ज्यादातर वही महिलाएं भाग ले रहीं जिनका पारिवारिक व्यक्ति कोई पहले से ही पंचायत में किसी पद पर रहा हो जो साफ इशारा करता है कि महिलाओं की आरक्षित सीटों में भी पुरुष सत्तात्मक झलक ही देखने को मिलेगी।

पंचायत चुनावों में क्षेत्रीयता जातिवाद जैसे मुद्दे अपने चरम पर होते हैं। जिनके आधार पर पंचायत चुनाव के हार जीत के समीकरण तैयार होते हैं, किंतु पंचायत स्तर का जो असल मुद्दा स्थानीय विकास का है। वह कहीं न कहीं इन संकीर्ण विचारों के आगे हमे वर्तमानं में तो कहीं भी देखने को नही मिलता है, किंतु असलियत में वास्तविकता यह है कि अगर हम वर्तमान में ग्राम स्तर को सुधार नहीं सकते तो हम एक श्रेष्ठ भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते है, जबकि ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि अगर असल में गांवों में बदलाव लाने की इच्छाशक्ति रखते हों तो ग्राम स्तर का चहुमुखी विकास हो सकता है क्योंकि ग्राम स्तर में असल बदलाव लाने कि शक्ति अगर किसी के पास है तो वह पंचायतें हैं, जो गांवों का सर्वत्र विकास करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं। लेकिन इसके लिए आवश्यक है पंचायत चुनावों में विकासात्मक दूरदृष्टि रखने वाले उम्मीदवारों का आना व जनता द्वारा उनको आने वाले में चुना जाना।

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