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एसएफआई हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी पूंजी पतियों के द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का करेगी बहिष्कार

 

शिमला(प्रे.वि.):- एसएफआई हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी किसान संघर्ष समिति के द्वारा पूंजी पतियों के द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का बहिष्कार करने के आह्वान का समर्थन करते हुए पूरे देश भर में रिलायंस जिओ तथा अन्य उत्पादन का बहिष्कार करेगी और तमाम छात्र समुदाय से भी अपील करेगी।

एसएफआई का मानना है कि देशभर में 26 नवंबर से किसान अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत है तथा उनका संघर्ष 15 दिन के बाद भी जारी है। सरकार से बातचीत किए छठे दौर की बात होने के बावजूद भी सरकार किसानों की मांगों को अनसुना कर रही है, जो सरकार की पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की मंशा को साफ दर्शाता है हम देखते हैं कि अंबानी जैसे मिलियनर्स पंजाब और हरियाणा में बड़े-बड़े स्टोरेज का निर्माण कर रही है और उसके तुरंत बाद केंद्रीय संसद में एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट को संशोधित किया जाता है और जरूरी वस्तुओं जैसे खाद्य सामग्री में गेहूं चावल डालें इत्यादि के भंडारण की सीमा को खत्म करते हुए अब इन जरूरी उत्पादों का असीमित रूप में भंडारण किया जा सकता है।

जाहिर है कि किसान जो फसलें उगाता है अपने उत्पाद को ज्यादा समय तक भंडारण की समस्या को देखते हुए भंडार नहीं कर सकता है जिसका फायदा बड़े-बड़े उद्योगपति और पूंजी पतियों को होगा क्योंकि वे सक्षम है बड़ी मात्रा में इन उत्पादों का भंडारण करने के लिए जिसका उदाहरण हम हरियाणा में देख सकते हैं, जिस तरह से बड़े-बड़े साइलोस का निर्माण किया जा रहा है जिन का दायरा 70 से 80 एकड़ तक फैला हुआ है जब उद्योगपति इतनी मात्रा में भंडारण करेंगे और साथ ही जब किसान अपनी नई फसल को बाजार में लाएंगे तो संभव है किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा क्योंकि हम जानते हैं कि जब डिमांड और सप्लाई उपयुक्त हो तो दाम गिरते हैं।

इसी के साथ किसानों को भी जो लंबे समय से एमएसपी की मांग कर रहे हैं। उनको एमएसपी से आधी कीमतों पर भी अपने उत्पादों को बेचना पड़ सकता है। इन कानूनों में किकॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की भी बात कही गई है जिसका सीधा संबंध व्यापारी और किसानों के बीच में है, यदि व्यापारी किसानों के उत्पादन को लेने से मना कर दे तो किसान को प्रशासनिक अधिकारियों के पास अपनी अपील की बात कही गई है, लेकिन हम जानते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का यह तरीका पहले भी भारत में अपनाया गया है, जिसका किसानों को फायदा ना होकर पूंजी पतियों को ही फायदा मिला और जिसका नतीजा ये रहा कि सरकारों को यह फैसला वापस लेना पड़ा और पारंपरिक खेती की ओर ही रुकना पड़ा। इस तरह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जो सरकार एमएसपी से भी अपने हाथ पीछे करना चाहती है।

केंद्र सरकार की मंशा साफ है कि जिस तरह से चुनाव प्रचार में पूंजी पतियों द्वारा अत्यधिक फंडिंग की गई है और केंद्र सरकार भी लगातार पूंजी पतियों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसे-ऐसे कानून संसद में पास कर रही है जिनका सीधा सर देश की आम जनता पर पड़ेगा और फायदा बड़े-बड़े उद्योगपतियों को होगा।

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