राजगढ़(चौहान):- कोविड-19 के चलते इस वर्ष भी जिला स्तरीय बैशाखी मेला राजगढ़ नहीं मनाया जाएगा। यह मेला प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है जिला इतिहास इस क्षेत्र के आराध्य देव शिरगुल से जुड़ा है। इस वर्ष भी कोरोना संकट के चलते सांकेतिक तौर पर ही मनाया जाएगा जिसमें 13 अप्रैल को शिरगुल देवता की पारंपरिक पूजा की जाएगी।
शिरगुल मंदिर समिति के अध्यक्ष सूरत सिंह ठाकुर के अनुसार राजगढ़ शहर के अस्तित्व में आने से पहले यह मेला ῾सरोट के टिब्बे पर मनाया जाता था। इस टिब्बे पर ῾शिरगुल देवता का छोटा सा मंदिर हुआ करता था जिसे शहर के अस्तित्व में आने के उपरान्त राजगढ़ मे स्थानान्तरित किया गया था। इनका कहना है कि कालान्तर से ही राजगढ़ मेला पूरे क्षेत्र के लोगो के लिए मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था।
लोग सरोट के टिब्बे पर ῾शिरगुल मंदिर में नमन करने के साथ मेले का भी भरपूर आन्नद उठाते थे। लोगो का विश्वास आज भी कायम है कि शिरगुल देवता के मेले के आयोजन से समूचे क्षेत्र में कभी भी महामारी के फैलने तथा ओलावृष्टि का भय नहीं रहता है और शिरगुल देवता की अपार कृपा से क्षेत्र में खुशहाली और समृद्धि का सूत्रपात होता है।
सूरत सिंह ठाकुर का कहना है कि देव शिरगुल का प्रार्दुभाव राजगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर दूरी पर शाया छबरोण में हुआ था और इसका सबसे प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर 12 हजार फुट की ऊंचाई वाले चुड़धार पर्वत पर विद्यमान है। शिरगुल को भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है और सिरमौर तथा जिला शिमला के अतिरिक्त पडोसी राज्य उत्तराखण्ड के जोनसार बाबर में शिरगुल की कुल देवता के नाम से अराधना की जाती हैं ।