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खनन व्यवसाय को उद्योग का दर्जा मिले, खनन व्यवसाय की हालत खस्ता : राजेंद्र तिवारी

  सिरमौर में गिरिपार क्षेत्र में खनन ही एक प्रमुख रोजगार का साधन है , 1962 से यहाँ पर खनन प्रक्रिया चल रही है। शुरू-शुरू में यहाँ पर तकरीबन 60 खाने हुआ करती थी जो कि धीरे-धीरे कम होते- होते आज 14 या 15 खाने रह गई है। खाने बन्द होने के कई कारण थे कुछ के रिन्यूअल नहीं हुए कुछ मार्किट डाउन हो गई। इस क्षेत्र में जो पर आधारित कम से कम 150 उद्योग है यही नहीं तकरीबन 100 किलोमीटर के दायरे में बहुत से लाइमस्टोन आधारित उद्योग हैं जहाँ सप्लाई की जा रही है I उसके अलावा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में भी लाइमस्टोन जाता रहा है बल्कि वेस्ट बंगाल , उड़ीसा तक भी गया है। अभी सबसे बड़ी दिक्कत ये हुई है कि कोरोना काल में खनन के ऊपर पहले ही दबाव था, माल नहीं बिक रहा था उसका काफी दबाव था और यहाँ पर और कोई जरिया नहीं था रोजगार का और कोई साधन नहीं गिरिपार में आपने देखा है कि केंद्र सरकार ने 10 हजार करोड़ रूपये का जो इंडस्ट्रियल पैकेज दिया था। उसमें से हमारे गिरिपार क्षेत्र में 1 करोड़ रूपया भी किसी इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट में नहीं लगा । स्थानीय लोगों के बच्चों को कोई भी रोजगार गिरिपार क्षेत्र में नहीं है। केवल खनन एक मात्र ऐसा साधन रह गया था जो लोगों को रोजगार, उनके घर में बैठे करके मिल रहा था । सरकार को रायलिटी व टैक्सेज मिल रहे थे और लोंगों को रोजगार । यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि खनन क्षेत्र को आज तक सरकार ने उद्योग घोषित नहीं किया जिसके कारण खनन को किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है। केवल खनन का लीज पटटा देने के बाद सरकार हम से रायलिटी और दूसरे कर लेती है लेकिन हमें किसी प्रकार कि कोई सुविधा नहीं मिलती यहाँ तक कि कोई भी बैंक हमें वित्तीय सहायता देने को तैयार नहीं होता है। 

हम लोग पहले ही दबाव में काम कर रहे थे उस के ऊपर ये कोरोना त्रासदी जो आया है उससे ऐसा लगा कि जो कुछ बचा हुआ था वो भी इसके आने से समाप्त हो गयाI खनन व्यवसाई पहले ही काम कर रहे हैं। गिरिपार में लाइमस्टोन का बहुत बड़ा भण्डार है । यह समझिये कि प्रतिवर्ष तकरीबन 8 से 10 लाख टन लाइमस्टोन का उत्पादन होता है । लाइमस्टोन अलग-अलग तरह के उद्योगों में भी इस्तेमाल होते हैं। यही पत्थर केमिकल ग्रेड कैल्शियम कार्बोनेट उद्योगों में प्रयोग होता है। जिससे फार्म उद्योग में टेबलेट्स बनाये जाते हैं। यहाँ तक की भी यही पत्थर हमारे बच्चो को जो अस्टोकैल्शियम दिया जाता है। उसमें भी इस्तेमाल होता है।अच्छी क्वालिटी का पत्थर जो है, उसमें इस्तेमाल होता है। कहने का मतलब ये है कि लाइमस्टोन एक ऐसा पत्थर है जो लकड़ी छोड़ कर हर जगह प्रयोग किया जाता है। हम सुबह अपना दिन टूथपेस्ट से शुरू करते है। उसमें भी लाइमस्टोन पाउडर होता है। कोलगेट जैसे बड़े उद्योगों को यहाँ से सप्लाई होती है। इसकी प्रमुखता इसी बात से लगाई जा सकती है, कि जीवन में हमारे हर स्टेज पर इसका प्रयोग होता हैI अब जहाँ तक इस कोरोना त्रासदी की बात कर रहें है, इस समय हम लोगो के साथ दिक्कत ये हुई कि एक तो मार्किट इससे पहले काफी डाउन हो गई थी। राजस्थान काफी हावी हो गया था । उनके यहाँ किराए कम था । हमारे यहाँ टैक्सेज दुसरे राज्यों से ज्यादा हैं वो भी एक कारण था। लेकिन कोरोना के आने की वजह से जो बाहर की लेवर थी वो चली गई। हमारे स्थानीय लोगो को किसी समय करीबन 10 हजार लोगो को रोजगार था, जो कि अब कुछ हजार रह गया है। यहाँ करीब एक हजार ट्रक्स चल रहे है जो माइन से सतौन और सतौन से फैक्ट्री तक जाते हैं । यह समझिए अगर 3 आदमी भी इस पर आश्रित होते है तो बहुत बड़ी संख्या हो जाती है।
 

इस कोरोना त्रासदी की वजह से काफी दिन लोग दबाव में रहें है । अभी सरकार ने हमको 30 प्रतिशत कार्य करने कि अनुमति प्रदान की है । मटेरियल लोडिंग के लिए बाहर से लेबर आती है, जो कोरोना काल में घर चले गए जिसके वजह से दिक्कत हो रही है। दूसरे समस्या यह है की अभी ट्रकों की मूवमेंट स्मूथ नहीं हुई है। इसलिए जहाँ चाहें वहाँ हम नहीं भेज सकते। कोरोना त्रासदी को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि अगर किसी प्रकार कि पाबन्दी सरकार लगाती है तो हम सभी उसकी पालना करेंगें। 

इस त्रासदी को देखते हुए सरकार से हमारी मांग है कि खनन को उद्योग का दर्ज़ा दिया जाये जिससे इस व्यवसाय को बचाने व चलाने के लिए वित्तीय संस्थाओं से सहायता मिल सके I इस समस्या को पहले भी सरकार के समक्ष कई बार रखा गया है लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक कोई सकारात्मक निर्णय नहीं हो पाया है I दूसरी मांग यह है कि सरकार जब तक सामान्य स्थिति नहीं होती तब तक रायलिटी माफ किया जाए। जैसे सरकार बाकी उद्योगो को सहयोग कर रही है जिससे यह उद्योग भी बचाया जा सके। इसके साथ अन्य करों में रियायत दी जाए। एक छोटा उदाहरण आपको देता हूँ राजबन में एक बैरियर होता था, 25 रूपए टन के हिसाब से लिया जाता है। उसका नाम नहीं मिला तो कह दिया गया (टैक्स ओन सर्टेन गुड्स कैरीड बाय रोड)। पूरे हिमाचल में कहीं पर बैरियर नहीं था सब बन्द हो गए थे, केवल ये राजबन वाला था। फिर पीछे मुख्यमंत्री और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी लोगों से अनुरोध किया गया तो बैरियर तो हट गया लेकिन वो टैक्स अभी भी जारी है वह लिया जा रहा है।

इस तरह के कुछ दबाव है। जिससे कारण खनन व्यवसाय बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है। लेकिन अगर क्षेत्र में रोजगार को बनाये रखना है, तो सरकार को इसके बारे में बहुत गंभीरता से विचार करना पड़ेगा।जिससे लोग अपनी रोज़ी रोटी कमा सकें व इस पर आधारित उद्योग फल फूल सके और अपनी पुरानी स्थिति में आ सकें।

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