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प्रो. मकरंद आर. परांजपे ने लेफ़्टिनेंट डा. प्रियंका वैद्य द्वारा लिखित कहानी संग्रह ‘लॉकडाउन डायरी’ पर चर्चा की

बीबीएन(कविता गौत्तम):– इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी (आईआईएएस) के निदेशक प्रो. मकरंद आर. परांजपे ने यूजीसी-आईयूसी सह-अध्येता (मार्च 2021 अवधि) लेफ़्टिनेंट डा. प्रियंका वैद्य द्वारा लिखित कहानी संग्रह ‘लॉकडाउन डायरी’ पर चर्चा की और लेखिका को प्रोत्साहित किया।

वैद्य ने योग के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान: स्वामी विवेकानंद का एक अध्ययन विषय पर संस्थान के संगोष्ठि कक्ष तथा सिस्को वेबेक्स पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। हिमाचल प्रदेश की साहित्यकार डॉ प्रियंका वैद्य पिछले 11 वर्षों से हिमाचल प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में अंग्रेजी विषय की सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत है। वह नालागढ़, जिला सोलन और देवों की भूमि छोटी काशी मंडी से सम्बन्ध रखती है। उनकी 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें तीन काव्य संग्रह, तीन शोध पुस्तकें और एक विवेचनात्मक कहानी संग्रह है। वह 100 से अधिक शोध पत्रों पर काम कर चुकी है। उन्हें अनेकों बार साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया है।
उन्हें वुमन अचीवर अवार्ड, हिमालय युवा सृजन सम्मान, वुमन आइकन अवार्ड, अटल बिहारी वाजपेयी सम्मान, काव्य प्रतिभा सम्मान और साहित्य श्री सम्मान मिला है। डॉ वैद्य कवि सम्मेलनों, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में उत्साहपूर्वक हिस्सा लेती है। डॉ वैद्य ने लंदन में यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट, कैंटरबरी में कालचक्र और कर्मयोग के सम्बन्ध में शोध पत्र प्रस्तुत किया। वैद्य की प्राथमिकता है कि भगवतगीता, योग, वेद, उपनिषद और भारतीय संस्कृति का उज्जवल पक्ष अंग्रेजी साहित्य के माध्यम से विश्व पटल पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए।  प्रकृति से उन्हें प्रेरणा मिलती है। वैद्य ने कैमडन टाऊन, लंदन में प्रवासी भारतीयों के संदर्भ में शोध पत्र प्रस्तुत किया। उनकी कविताएँ और कहानियाँ जिस अनुभूति को तरंगित करती है, उसी कलम से कुछ स्याही लेकर डॉ वैद्य ने दो और कहानी संग्रह लिखे हैं।
यह संग्रह लॉकडाउन पर आधारित छब्बीस कहानियों का संकलन है। कहानियां जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। लॉकडाउन का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य, प्राकृतिक संवाद, जीवंत पहलू, घर और घर से बाहर, देश और विदेश की सीमाओं को लांघती कहानियां जीवन को परिभाषित करती  है लॉकडाउन ने ज़िंदगी की अनसुलझी पहेलियों को सुलझा दिया, ठहरना और मनन करना सिखा दिया।
भारतवर्ष में लॉकडाउन के विश्वव्यापक प्रभाव को देख कलम रुक नहीं पाई और चिर निरंतर बहती नदी मानो रुक गई। श्वास कदाचित ख़ौफ़ से कम और आत्मानुभूति से ज़्यादा रुके। अनगिनत लोगों के लिए प्रार्थना में हाथ जुडेंगे और प्रकृति जिसकी गोद के स्पर्श को कभी अनुभूत नहीं किया था वो अंतरात्मा का अभिन्न अंग बनने लगी। रिश्तों को समझा और जिंदगी के दीये में लौ पुन: जलने लगी।
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