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समूचा भारतवर्ष कोविड-19 की महामारी से ग्रस्त एवं त्रस्त होकर इस रोग से संक्रमित होने वालों के जीवन को बचाने के लिए है प्रयासरत : रमेश चन्द्र

  लेखक – रमेश चन्द्र ‘मस्ताना’
विगत वर्ष से समूचा भारतवर्ष कोविड-19 की महामारी से ग्रस्त एवं त्रस्त होकर, इस रोग से संक्रमित होने वालों के जीवन को बचाने के लिए प्रयासरत है। फिलहाल हवा में फैलते इस वायरस के संक्रमण से बचने के उपायों में मास्क पहनना, दो गज की दूरी और हाथों को बार-बार धोना अथवा सैनिटाइजर से वायरस – मुक्त करना ही बताए जा रहे हैं। इस वायरस के किसी भी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने पर डॉक्टरी-उपचार अथवा किसी वैक्सीन से किस प्रकार ठीक करना है, इस सन्दर्भ में भले ही कोई कारगर शोध अभी तक विश्व में सामने नहीं आ पाया है पर इतना अवश्य है कि दो-तीन वैक्सीन का प्रयोग मानव-शरीर पर अवश्य किया जा रहा है ताकि भविष्य में उन लोगों पर इसके संक्रमण को रोका जा सके।

कोरोना नामक यह वायरस वास्तव में उस बिन बुलाए मेहमान की तरह मानव-शरीर में प्रवेश कर रहा है, जहां पर उसे मानवीय भूल के कारण प्रवेश करना आसान लग रहा है। शोध के मुताबिक कारोना वायरस नाक-मुंह के माध्यम से गले अथवा फेफड़ों तक अपने मार्ग का निर्माण करता है और फिर यह मानव शरीर के लिए घातक बन जाता है। सच्चाई यह भी है कि यदि इस वायरस को शरीर में प्रवेश करने ही न दिया जाए तो यह बाहरी परिवेश में ही कुछ समय उपरांत अपने आप ही मृत्त-प्राय: हो जाता है। दूसरी ओर यदि यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है तो वर्तमान हालातों में केवल शरीर के अन्दर बैठा रोग-प्रतिरोधक-क्षमता नामक डॉक्टर ही इसका इलाज कर सकता है अन्यथा यह शरीर के जीवन-तन्त्र को क्षत-विक्षत करते हुए मानवीय प्राणों पर भारी पड़ता जा रहा है। इसलिए कारोना-कोविड के साथ-साथ अन्य रोगों से बचने के लिए शरीर में रोग – प्रतिरोधक – क्षमता को बनाए रखना बहुत आवश्यक है।

किसी भी मनुष्य के लिए अपने शरीर को स्वस्थ रखने और अपने शरीर के भीतर रोग – प्रतिरोधक – क्षमता को बढ़ाने के लिए अपने खान-पान के साथ-साथ आचार-व्यवहार, श्रम-परिश्रम और अपनी दिनचर्या को बनाए रखने की अति-आवश्यकता होती है। मानव शरीर में यह रोग – प्रतिरोधक – क्षमता नामक डॉक्टर तभी तक विद्यमान रहता है, जब तक व्यक्ति अपने शरीर में उसके लिए उचित वातावरण का निर्माण करता रहता है। यह भी अति महत्वपूर्ण है कि यह रोग – प्रतिरोधक – क्षमता नामक डॉक्टर न तो किसी बाहरी दवाई अथवा टानिक के द्वारा ही शरीर में जिन्दा या बलशाली बनाया जा सकता है और न ही इसका निर्माण कुछ दिनों में ही किया जा सकता है। इस डाक्टर को शरीर में जिन्दा रखने के लिए एक दीर्घकालिक और सतत् प्रक्रिया को अपनाना बहुत जरूरी है। यदि मनुष्य होश संभालने के उपरांत से ही प्राकृतिक रूप में उत्पन्न होने वाले अन्न, फल, सब्जियों और जड़ी-बूटियों आदि का प्रयोग करने के साथ-साथ शारिरिक श्रम, जिससे पसीना निकलता रहे अथवा अधिक से अधिक पैदल चलकर, पाचनतंत्र को सुपाच्य बनाए रखता है तो यह रोग – प्रतिरोधक – क्षमता नामक डॉक्टर शरीर में किसी भी रोग को घुसने अथवा होने ही नहीं देता है। आश्चर्य एवं दुख की बात यह भी है कि मनुष्य समय पर इस ओर ध्यान नहीं देता है और जब समस्या का पानी सिर के ऊपर से निकलने वाला होने लगता है, तब वह इस डाक्टर को अपने शरीर में तलाशने अथवा अस्पताल की ओर दौड़ने की कोशिश करता है परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

रोग – प्रतिरोधक – क्षमता नामक इस डाक्टर को शरीर में जिन्दा और दीर्घ काल तक बसाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को बहुत बड़ा धन इत्यादि भी खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह तो एक ऐसा डॉक्टर है जो हर समय व्यक्ति के पास मुफ्त की चीजों और केवल शारीरिक श्रम के माध्यम से ही वर्षों-वर्षों तक जिन्दा रखा जा सकता है। इस को बनाए रखने के लिए मनुष्य को शुद्ध एवं जैविक अन्न के साथ-साथ मौसमी ताजी सब्जियां एवं सहज रूप से पके हुए फलों के अतिरिक्त कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनके निरन्तर प्रयोग से व्यक्ति स्वस्थ एवं निरोग रह सकता है। विभिन्न वृक्षों अथवा जड़ी-बूटियों के फूल, फल, पत्ते अथवा जड़ें तक भी मनुष्य की रोग – प्रतिरोधक – क्षमता को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। इतना अवश्य है कि इन का प्रयोग करने से पहले अपने आसपास के बुजुर्गों या अनुभवी लोगों का परामर्श अवश्य ले लेना चाहिए। इन वृक्षों अथवा जड़ी-बूटियों में विशेष रूप से आंवला, हरड़, भेह्ड़ा, सूनणा, अरजन की छाल, बणा, बसूंटी, बरेया, गोर, गांन्दला (कढ़ी पत्ता), गिलोय, ऐलोवेरा, पुट्ठकंडा (अप्पामारक), इट्टसिट्ट इत्यादि के साथ-साथ लैमन – ग्रास, तुलसी, पुदीना, ब्राह्मी – बूटी आदि अनेकानेक जड़ी – बूटियां हैं, जिनका कोई एक अंग अथवा पांचों अंग अर्थात् जड़, तना, पत्ते, फूल और फल, जिन्हें “पंचांग” की संज्ञा दी गई है, का प्रयोग करके व्यक्ति पूरी उम्र हृष्ट – पुष्ट व निरोग रह सकता है। यह सभी चीजें प्रकृति और ईश्वर के वरदान स्वरूप मानव जाति के कल्याण हेतु पृथ्वी पर उपहार स्वरूप बिल्कुल मुफ्त में प्राप्त हैं। यह अलग बात है कि वर्तमान में शहरों के भीतर यह चीजें मोल अथवा मंहगे दामों पर मिल रही हैं। परन्तु ग्रामीण अथवा पहाड़ी परिवेश में तो यह सभी चीजें मुफ्त में ही प्राप्त हो जाती हैं।

वर्तमान के इस भागमभाग के युग में, जब व्यक्ति के पास फुर्सत नाम की चीज ही नहीं रह गई है, उसमें व्यक्ति का वर्तमान भले ही आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता जा रहा हो परन्तु उसका भविष्य सुखद एवं निरोग होगा, इस सब की संभावनाएं धुन्धली ही दीख रही हैं। एक अकेले कारोना वायरस ने ही पूरे विश्व को हिला कर रख दिया है और सारी व्यवस्थाएं ही उल्ट-पल्ट होने के कगार पर पहुंचती दिखाई देने लगी हैं। फिर भी इस चिन्तनीय दौर में एक उज्ज्वल आशा की किरण यह दिखाई दे रही है कि जिस व्यक्ति का शरीर हृष्ट-पुष्ट है, कोई गंभीर बीमारी उसको नहीं है और उसने अपने शरीर की रोग – प्रतिरोधक – क्षमता को पूर्ण रूप से सुदृढ़ बनाया हुआ है, उसका यह कारोना नामक महामारी का दैत्य भी कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा है। इसलिए सभी देश और प्रदेश वासियों और विशेष रूप से नवयुवक वर्ग से यह आग्रह है कि वह अपने मन में किसी भी प्रकार का अज्ञात भय न रखते हुए, अपनी सोच को सकारात्मक बनाते हुए प्रेरक प्रतिभाओं से प्रेरित होकर, सरकार एवं डॉक्टरों के द्वारा बतलाए हुए नियमों का पालन अवश्य करते रहें । अपने शरीर के भीतर रोग – प्रतिरोधक – क्षमता को हमेशा बनाए रखने के लिए शारीरिक परिश्रम, योगाभ्यास – कसरत, पैदल चलना अथवा सुबह-शाम की सैर और अनुभवी-बुजुर्गों के परामर्श से प्रकृति-प्रदत्त जड़ी-बूटियों का प्रयोग अवश्य ही करते रहें । इन सब चीजों के निरन्तर प्रयोग से आपके शरीर में बीमारी का प्रवेश तो अवरुद्ध होगा ही साथ ही साथ शरीर की आभा भी बरकरार रहेगी। इतना अवश्य है कि इन सबका सुखद फल आपको एकदम भले ही चामत्कारिक रूप में तत्काल ही न मिले परन्तु यह भी शाश्वत सत्य है कि इन समस्त चीजों के जादुई प्रभाव आपको ता-उम्र मिलते एवं अनुभूत होते रहेंगे। कारोना नामक इस भयावह महामारी के दौर में यदि इलाज की अपेक्षा परहेजों व नियमों का पालन करते हुए, शारीरिक श्रम-परिश्रम के साथ-साथ खान-पान की शुद्धता बनाए रखेंगे तो न तो कोई रोग ही शरीर में प्रवेश कर सकेगा और न ही शरीर की दुर्बलता या बुढ़ापे का डर ही सता पाएगा। इसी के साथ-साथ रोग – प्रतिरोधक – क्षमता के सुदृढ़ रहने से कारोना नामक यह अदृश्य दैत्य भी न तो आपका कुछ बिगाड़ ही पाएगा और न ही आपके शरीर में प्रवेश करने का साहस ही कर पाएगा।

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