शिमला(पी.आई.बी.):- केरल के वायनाड जिले का किंवदंतियों और रामायण की कथाओं से गहरा नाता है। वायनाड के करीब 30 स्थान रामायण की कहानी कहते हैं और इनके नाम रामायण के मौखिक वर्णन पर आधारित हैं। ऐसा माना जाता है कि यह रामायण का उत्तरार्द्ध – उत्तर रामायण था, जब अयोध्या से निकाले जाने के बाद सीता के जीवन की कहानी सामने आती है। यहां कुछ ऐसी जगहें और किंवदंतियां हैं, जिनसे रामायण की कम चर्चित चीजों के बारे में जानकारी मिलती है :
सीतातीर्थम या कानेर्टेरडाकम (आंसुओं की झील)
यह पोंकुझी, मुथंगा में सीता देवी मंदिर के पास स्थित वायनाड का एक प्राकृतिक तालाब है। माना जाता है कि यह सीता के आंसुओं से बना है। जब सीता को अयोध्या से निकाला गया, तो किंवदंती है कि राम ने लक्ष्मण से कहा था कि वह उन्हें ऋषि वाल्मीकि के आश्रम के पास जंगल में छोड़ आएं। यह वही स्थान बताया जाता है जहां सीता को छोड़ दिया गया और वह इतना रोईं कि आंसुओं से तालाब बन गया। माना जाता है कि सीता अल्थारा और कन्नुनेरपुझा या कन्नाराम पूझा (आंसुओं की नदी), जो काबिनी नदी की सहायक है और जिले में बहती है, में भी एकांत में बैठी थीं और उनके आंसुओं से यह नदी उत्पन्न हुई है।
आश्रमकोली में वाल्मीकि आश्रम
स्थानीय मान्यता के अनुसार शिष्यों के लिए ऋषि वाल्मीकि का आश्रम पुलपल्ली के पास आश्रमकोली में स्थित था। ऋषि वाल्मीकि के आश्रम, फूस की छत के साथ मिट्टी के ढांचे के अवशेष यहां एक चढ़ाई पर देखे जा सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि के शिष्यों ने सीता को जंगल में रोते देखा और ऋषि को इसकी जानकारी दी। ऋषि वाल्मीकि ने सीता को अपने आश्रम में शरण दी। कहा जाता है कि आश्रम में फूस की छत स्थानीय मुल्ला कुरुमा आदिवासी समुदाय ने बनाई थी। माना जाता है कि सीता ने अपने जुड़वां बेटों– लव और कुश को इसी आश्रम में जन्म दिया था और यह आदिवासी समुदाय की महिलाएं थीं, जिन्होंने प्रसव के बाद उनकी देखभाल की थी। कहते हैं कि आश्रम के सामने वाला रास्ता मुनिक्कलु– वह चट्टान जहां ऋषि वाल्मीकि ने तपस्या की थी, तक जाता है। पुलपल्ली के पास शिशु माला है, वह जगह जहां सीता के दोनों पुत्रों के खेलने की बात कही जाती है और योगीमूला जैसा कि नाम से ज्ञात होता है, महर्षियों का निवास था।
सीता लव–कुश मंदिर
पुलपल्ली के जडायट्टकावु में प्रसिद्ध सीता देवी लवकुश मंदिर स्थित है। आदिवासी मान्यता है कि यह वही जगह है जहां सीता धरती में समाहित हुई थीं और उनके केशों ने जमीन को छुआ था। सीता के दोनों पुत्र ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में पले–बढ़े। वह उनके गुरु भी थे और उन्हें मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित किया था। मौखिक वृत्तान्त के अनुसार शिकारियों के राजा उनसे मिले थे और उनके लिए पुलपल्ली में एक घर बनाया था, जहां वे आश्रम से जाकर रहने लगे। अब उस जगह पर मंदिर है। साथ ही लोककथाओं के अनुसार भगवान राम अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे और हनुमान यज्ञ के लिए घोड़े के साथ जब पुलपल्ली पहुंचे तो सीता के पुत्रों– लव और कुश ने उसे पकड़ लिया और एक बरगद के पेड़ में घोड़े को बांध दिया, उस जगह पर मंदिर बनाया गया है। उस स्थान पर बरगद का पेड़ देखा जा सकता है।
जडायट्टकावु मंदिर
वायनाड के लोगों का मानना है कि सीता उस जगह पर पृथ्वी में अदृश्य हो गई थी, जहां जडायट्टकावु मंदिर स्थित है। यह सीता लव–कुश मंदिर से महज एक किमी की दूरी पर है। लोककथाओं के अनुसार, भगवान राम यह खबर सुनकर कि उनके घोड़े को बांध लिया गया है, अपनी सेना के साथ पलपल्ली आए थे। हालांकि जब उन्होंने यहां पहुंचकर सीता और अपने दोनों पुत्रों को देखा तो उनसे अयोध्या लौटने के लिए कहा लेकिन सीता ने वहां से निकाले जाने के बाद जो अपमान सहा था उसके कारण उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने धरती माता से वापस पृथ्वी में लौटने की प्रार्थना की, इस पर धरती फट गई और सीता पृथ्वी में समाहित हो गईं। जब सीता धरती में समाहित हो रही थीं तो भगवान राम के बारे में कहा जाता है कि वह दुख और व्याकुलता में उनके बालों को पकड़े हुए थे और उन्हें रोकना चाह रहे थे लेकिन उनके हाथ में सीता के बाल ही रह गए। इसीलिए इस स्थान का नाम चेदत्तनकवु या जडायट्टकावु पड़ा (जडा/चेडा का अर्थ होता है बाल और अट्ट का मतलब है अलग हुए और कावु का अर्थ है मंदिर)। माना जाता है कि सीता की जीवन शक्ति, जिसका जडायट्टकावु में आह्वान किया गया था, उसे पुरक्कड़ी मंदिर में रखा गया था।
थिरुनेल्ली
मानंतवाड़ी से 32 किमी की दूरी पर स्थित थिरुनेल्ली को स्थानीय मान्यता के अनुसार देवताओं का निवास स्थान माना जाता है और उसे दक्षिण की काशी के रूप में प्रसिद्धि मिली है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने लक्ष्मण, भरत के साथ अपने पिता राजा दशरथ का अंतिम संस्कार थिरुनेल्ली मंदिर पर पापनाशिनी नदी के किनारे किया था। इससे पहले उन्होंने केरल के सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक, थ्रिसिलरी मंदिर में पूजा–अर्चना की थी। यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने रावण पर जीत हासिल करने के लिए थिरुनेल्ली मंदिर में प्रार्थना की थी।
कई दूसरी जगहों का भी रामायण महाकाव्य से जुड़ाव मिलता है। अंबुकुथी माला, वह पहाड़ी है जिस पर प्राचीन एडक्कल गुफाएं मिलती हैं। माना जाता है कि इसका आकार सोती हुई महिला, रावण की बहन शूपर्णखा की तरह था, जिसके नाक और कान लक्ष्मण ने काट दिए थे। पुलपल्ली के पास इरुलम गांव के बारे में कहा जाता है कि रोजाना पूजा के लिए सीता यहां फूल तोड़ती थीं। इरियापल्ली के बारे में कथा है कि जब लव और कुश इस गांव में आए और पीने का पानी मांगा तब उन्हें ग्रामीणों की परेशानियों का पता चला कि वे कैसे जीवनयापन कर रहे थे। आगे सीता के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने गांववालों को भैंस दी ताकि उनकी आजीविका चल सके। मलयालम में इरुमा का मतलब होता है भैंस और कहा जाता है कि इसी कारण जगह का नाम इरियापल्ली रखा गया। मानिकुन्नुमाला एक शिलाखंड है, जिसके बारे में माना जाता है कि यहीं पर सीता और लक्ष्मण ने चतुरंगा (शतरंज) खेला था।
उत्तर रामायण की कथाएं पूरे वायनाड क्षेत्र में इतनी अंतर्निहित हैं कि जिला पर्यटन संवर्धन परिषद ने ‘रामायण ट्रेल‘ के पर्यटन को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। वायनाड जिला पर्यटन संवर्धन परिषद के सचिव श्री बी. आनंद कहते हैं, ‘वायनाड के अलावा दुनिया में कहीं भी आप सीता लव–कुश मंदिर नहीं पाएंगे। यह स्पष्ट रूप से वायनाड के उत्तर रामायण के साथ गहरे संबंध को दिखाता है, जो वायनाड के हर नुक्कड़ और कोने में प्रकट होता है। डीटीपीसी कहानी कहने की विधा में ट्रेल को लागू करने की योजना बना रहा है जिसमें एक से चार दिन की यात्राएं शामिल हैं, जिसमें न केवल रामायण ट्रेल शामिल होगी बल्कि साइकिलिंग, बांस राफ्टिंग, गांव के जीवन के अनुभव भी शामिल होंगे ताकि आगंतुक पौराणिक कथाओं के करीब खुद को महसूस कर सकें और रामायण के इस हिस्से को जान सकें।‘
वायनाड कैसे पहुंचें
निकटतम हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन कोझिकोड (पूर्व में कालीकट) में है। कोझिकोड एयरपोर्ट एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है और दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, कोयंबटू