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निःस्वार्थ सेवा ही जिनका मुख्य ध्येय वह है अरविन्द गुप्ता

(निदेशक, ह.प्र.राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक)

हाल ही में वर्ष 2018 में हिमाचल प्रदेश सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बेंक के चुनाव में दिग्गजों को भारी मतों से हराकर विजय प्राप्त करने वाले अरविन्द गुप्ता पूरे सिरमौर जिले से निदेशक के पद को सुशोभित किए हुए हैं। अरविन्द का जन्म 13 मई 1960 को जिला सिरमौर के सराहां तहसील के अन्तर्गत आने वाले ग्राम सादनाघाट में हुई जहॉं इनके पिता शिक्षा विभाग में कार्यरत थे।
यह मूलरूप से नाहन जिला सिरमौर के रहने वाले है तथा वर्ष 1980 में गुरू की नगरी पांवटा साहिब में आकर बस गये और आज तक वहीं रह रहे हैं। इनक पिता मामचंद गुप्ता टीजीटी अध्यापक के पद से सेवानिवृत हुए हैं तथा मई 2011 में उनका स्वर्गसवास हो गया था। इनकी माता श्रीमती बिमला देवी भी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत हुई हैं। इनके दो भाई संजीव गुप्ता व पकंज गुप्ता हैं। संजीव जहॉं भूषण स्टील कम्पनी चंडीगढ़ में बतौर इंजीनियर के पद पर तैनात हैं वहीं छोटे भाई पंकज की पांवटा साहिब में ही अनमोल इलैक्ट्रीकल्स के नाम से अपनी दुकान है। इनकी एकमात्र बहन अंजू है।
अरविन्द की प्रारम्भिक शिक्षा रेणुका विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले ग्राम रजाणा से हुई । उसके बाद सीनियर सेकेंडरी स्कूल छात्र तारूवाला से इन्होंने कक्षा 9वीं से 12वीं तक शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद वर्ष 1986 मे इन्होंने नाहन के डिग्री कॉलेज से स्नातक व एम.ए. इकॉनोमिक्स तक शिक्षा हासिल की। उसके बाद इन्होंने अनेकों काम किये।
इनका संघ में बचपन से ही जुड़ाव रहा है तथा कॉलेज समय में यह एबीवीपी के सदस्य भी रह चुके हैं। इनका कहना है कि चूंकि अटल विहारी वाजपेयी जी से यह काफी प्रभावित हुए हैं और देशहित को सर्वोपरि मानते हुए इनका इस तरफ अधिक जुड़ाव हुआ। वर्ष 1990 में जहॉं भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने तथा वर्ष 1990 से 1992 तक भाजपा के कार्यकर्ता के साथ-साथ मंडल कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे और पिछले 6 वर्षों से ब्लॉक माजरा के महामंत्री के तौर पर भी काम कर रहे हैं, जिसमें पूरा विधानसभा क्षेत्र शामिल है। अपने जीवन में सबसे सुखद दिन यह अपने बेटे के जन्म वाले दिन तथा चुनाव जीतने वाले दिन को मानते हैं तथा इन्हें अपने पिता जी के देहान्त पर सबसे अधिक दुःख हुआ था।
अरविन्द गुप्ता का विवाह 10 नवम्बर 1994 को हरियाणा जिला के जगाधरी की रहने वाली कामिनी गुप्ता से हुआ जो स्नातक तक शिक्षा ग्रहण किये हुए है। इनका विवाह परिवार द्वारा तय किय गया था और इन्होनें कामिनी को पहली बार में ही पसन्द कर लिया था। कामिनी से दो चश्मे-चिराग पारस व संयम इनके जीवन बहार में आए। अरविन्द कहते हैं कि इनके अपनी पत्नी से बड़े मधुर सम्बन्ध हैं तथा संयुक्त परिवार होने की वज़ह इन दोनों को कभी लड़ाई करने का मौका ही नहीं मिला। अपनी पत्नी की अच्छाईयों का जिक्र करते हुए अरविन्द कहते हैं कि वह परिवार की हर छोटी-छोटी बातों का पूरा ध्यान रखती हैं तथा वह पूरे परिवार को एक सूत्र में पिरोये रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
अरविन्द को अपना पूरा परिवार जिसमें इनका आज के समय में भी संयुक्त परिवार है से सबसे अधिक स्नेह है तथा इन्हें अपने माता-पिता से सबसे अधिक स्नेह मिला है। अपने आदर्श शिक्षक का दर्जा यह जयगोपाल शर्मा को देते हैं जिन्होंने इन्हें ईमानदारी की राह पर चलने की शिक्षा दी । अपने बचपन के मित्रों में पंकज भटनागर, अरूण दिनकर तथा संजय चौधरी को मानते हैं। इनका मुख्य शौक समाजसेवा करना तथा किसी गरीब की मदद करने में इन्हें अपार सुख की अनुभूति होती है। इनका प्रिय खेल बॉलीबाल, खो-खो रहा है जिसे इन्होंने स्कूल समय में खूब खेला है। खाने में शुद्ध शाकाहारी व्यंजन पसन्द करते हैं जिसमें कचोरी, छोले तथा आलू की सब्जी व मीठे में गाजर का हलवा इन्हें बेहद पसन्द हैं।
अपने बच्चों को आप क्या बनाना चाहते हैं इस सवाल के जवाब में अरविन्द कहते हैं कि बच्चों की इच्छा पर निर्भर करता है, इनका तो फर्ज़ है उन्हें अच्छी शिक्षा देना। अपने आदर्श पुरूष का दर्जा अपने पिता को देते हैं तथा मकहिलाओं में इनकी आदर्श इनकी माता जी व इनकी पत्नी हैं। राजनीति में अपना आदर्श अटल बिहारी वाजपेयी, शांता कुमार को मानते हैं जो एक साफ- सुथरी छवि के नेता थे।
अरविन्द की धार्मिक आयोजनों में भी विशेष रूचि रहती है। यह कई वर्षों से रामलीला में महामंत्री के तौर पर भी सेवा कर रहे हैं। सनातन धर्म सभा से जुड़े हैं तथा वर्तमान में इसके अध्यक्ष पद को सुशोभित किये हुए हैं। यही नहीं जगन्नाथ सेवा ट्रस्ट में भी इनकी हमेशा उपस्थिति रही है।
अरविन्द कहते हैं कि इन्होनें आज तक जो भी काम किए अपने माता-पिता के आदर्शों को मानकर किये तथा कभी किसी को नुकसान नहीं पहुॅंचने दिया और निःस्वार्थ भाव से सेवा करना ही इनके जीवन का मुख्य ध्येय रहा है। यह कहते हैं कि न तो इन्होंने कभी किसी पद की इच्छा रखी और न ही भविष्य में कभी किसी पद की चाह रखते हैं। कहते हैं कि आम कार्यकर्ता को पद तो स्वयं ही मिल जाते हैं।

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