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पाक कला में प्रवीण हैं कविता गोयल

एक आदर्श गृहिणी के साथ-साथ समाजसेवा में जो महिलाएं रूचि रखती हैं वह भी समाज के लिए एक विशिष्ट स्थान पाती हैं। कविता गोयल भी ऐसी महिला हैं जो एक आदर्श गृहिणी के साथ-साथ समाजसेवा में भी पूरी रूचि रखती हैं तथा अपने घर आने वाले हर नाती-रिश्तेदार का पूरा ध्यान रखती हैं। यही नहीं धर्म में भी इनकी विशेष रूचि है और प्रतिदिन यह सत्संग को भी अपने जीवन का हिस्सा बनाए हुए हैं।
कविता का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 29 अगस्त 1969 को हुआ। माता सत्यवती अग्रवाल एक कुशल गृहिणी एवं सीधी सादी महिला थी और पिता कृष्ण अवतार मुरादाबाद के प्रसि( सर्राफ थे। इनके तीन भाई व एक बहन है। बड़े भाई अतुल बिजनौर में सर्राफे का कार्य देखते हैं । दूसरे नम्बर पर बहन अमिता हैं। तीसरे नम्बर पर अजय अग्रवाल हैं जो मुरादाबाद में सर्राफे का व्यवसाय करते हैं। उनसे छोटे अखिल भी अपने भाई के साथ बिजनौर में ही सर्राफे के काम में लगे हुए हैं। कविता अपने परिवार में सबसे छोटी व लाडली है। सभी भाई-बहनों से इन्हें भरपूर स्नेह मिला है जो आज भी पूरी तरह कायम है।
कविता की शिक्षा मुरादाबाद से शुरू हुई तथा वहॉं से इन्होंने एम.ए.बी.एड तक शिक्षा ग्रहण की। आदर्श शिक्षक का दर्जा यह गोकुलदास गर्ल्स कॉलेज में कार्यरत शिक्षक सरोज भाटीक को देती हैं जो पेंटिग की शिक्षिका थी। यह अपनी माता को ही सबसे अधिक प्यार करती हैं और शादी के बाद अपने पति व बेटी को करती हैं। वहीं इन्हें अपनी माता से ही सर्वाधिक स्नेह मिला है।
अपना आदर्श पुरूष अपने पति को बताती हैं और कहती हैं कि पति से उन्होंने बहुंत कुछ सीखा हैं। वहीं आदर्श महिला का दर्जा अपनी माता को देती हैं। अपने जीवन का सबसे दुःखद दिन अपनी माता के देहान्त वाले दिन को मानती हैं वहीं सबसे सुखद दिन अपनी बेटी के जन्म वाले दिन को मानती हैं।
कविता का विवाह 31 मई 1995 को पांवटा निवासी उद्योगपति अरूण गोयल से मुज्जफरनगर में हुआ जहॉं इनके पति एक उद्योग चलाते थे। 8 जुलाई 1997 को इनके यहॉं एक परी का आगमन हुआ जिसका नाम इन्होंने प्रथा रखा। प्रथा आजकल स्कॉटलैंड से बिजनेस मार्किट की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। इनका सपना है कि इनकी बेटी अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पिता का व्यवसाय में हाथ बटाए। मुख्य शौकों में जिमनास्टिक करना, पेंटिंग करना व रसोई में तरह-तरह के व्यंजन बनाना है। खेलों में इन्हें जिमनास्टिक व क्रिकेट अच्छे लगते हैं वहीं खिलाड़ियों में सचिन व विराट को पसन्द करती हैं। फिल्मों में इन्हें सबसे अधिक शोले फिल्म ने प्रभावित किया। वहीं इनके पसन्दीदा अभिनेता अभिताभ बच्चन व अभिनेत्री रेखा हैं। अपना आध्यात्मिक गुरू मशहूर उद्योगपति व समाजसेवी बी.डी.त्यागी को बताती हैं जिन्होंने इन्हें जीवन जीने की राह दिखाई। इनका पूरा जीवन उतार-‘चढ़ाव वाला रहा है लेकिन अपने परिवार के प्रति समर्पण से इन्होंने अपनी हर राह आसान की। इनकी बचपन की एकमात्र मित्र अनिता हैं जो आजकल दिल्ली में अपने परिवार के साथ रह रही हैं।
कविता सभी सामाजिक व धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़ हिस्स लेती हैं और अपने घर आने वाले नाती रिश्तेदारों का आवभगत करने में इन्हें आनन्द की अनुभूति होती है। इनके पति की आज्ञा से इन्होंने अपने परिवार की देहरादून स्थित एक उद्योग का करीब एक साल तक कार्य भी देखा और एक होटल को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कविता के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है कि उनके किसी भी कृत्य से किसी का भी अहित न हो और सभी लोग सुखी और सम्पन्न हो। और यह सारी सीख इन्होंने अपनी माता से विरासत में पाई है।
कविता अपने परिवार में सबसे छोटी थी और यह संयुक्त परिवार में रहते थे, इस कारण ही आगन्तुकों का स्वागत करना बचपन में ही बखूबी सीख गई थी। सबसे छोटी होने के कारण अपने भाई बहनों की लाडली रही हैं और यह प्रक्रिया आज भी जारी है और आज भी इनके पिता पक्ष में इनकी राय मानी जाती है और सभी पितृ पक्ष के लोग इनको खूब मान सम्मान देते हैं।
कविता अपने परिवार व अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखती हैं कविता के पति व परिवार को जहॉं व्यायाम करने की जरूरत बताती हैं वहीं अपने शरीर का भी पूरा ध्यान रखती हैं और जिम व अन्य कसरतें भी सुचारूष् रूप से करती हैं।
यूॅं तो कविता पाक कला में काफी पारंगत है और नित-नये -नये व्यंजन बनाना इन्हें खूब अच्छा लगता है लेकिन स्वयं टिक्की चाट व गोल गप्पे को काफी पसन्द करती हैं। बाजार में उनका स्वाद चखने से भी नहीं चूकती लेकिन शु( शाकाहारी व्यंजन ही इन्हें भाते हैं। कविता एक बड़े औद्योगिक समूह की पुत्रवधु हैं लेकिन उनमें किसी भी तरह का घमंड नहीं है। हर छोटे से छोटे व्यक्ति को भैया कहकर संबोधित करती हैं और हर छोटे बड़े को पूरा सम्मान देती हैं। अपनी एकमात्र बेटी को एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के साथ-साथ एक सफल उद्योग पति बनाने के सपने अपने मन में संजोये हैं और उम्मीद करती हैं कि उनकी बेटी अपने पिता के पद चिन्हों पर चलकर उनके औद्योगिक साम्राज्य को एक ऊॅंचे मुकाम पर पंहुचाने में कामयाब होंगी।

प्रत्यूष

आक्शी