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दीन-दुखियों की सेवा ही जिनका धर्म है महेन्द्र सिंह

पांवटा के देवीनगर में गुरदयाल कौर की कोख से जन्में महेन्द्र सिंह आज किसी भी परिचय के मोहजात नहीं हैं। इनका जन्म 17 सितम्बर 1949 को हुआ। इनके पिता सोहन सिंह कृषक के साथ-साथ जाने-माने पहलवान थे जिनके परिवार की कई बीघा भूमि थी। इनके दादा अतरू राम तथा दादी मॉं हरदेवी की धर्मकर्म में काफी रूचि थी। इनके दो भाई सुरेन्द्र सिंह तथा सरवन सिंह हैं। इनकी दो बहनें मंजीत कौर तथा कश्मीर कौर हैं तथा दोनों अपना -अपना वैवाहिक जीवन सुखपूवर्क बिता रही हैं।
महेन्द्र की पढ़ाई में कभी कोई रूचि नहीं रही लेकिन इन्होंने कक्षा 7 तक शिक्षा ग्रहण की है। शुरू से ही इन्हें व्यापार करने की चाह थी और अपनी इसी चाह के कारण इन्होंने मात्र3 माह लोक निर्माण विभाग में नौकरी की जहॉं इन्हें प्रतिमाह 112 रूपये तनख्वाह मिलती थी। 3 माह के तनख्वाह को बचाकर इन्होंने एक व्यवसाय करने की ठानी और इनकी उड़ानों को जल्द ही पंख भी मिल गये। पांवटा साहिब के तब के जाने-माने व्यवसायी लाला पन्ना लाल के पास यह व्यापार के गुर सीखने जाने लगे और उन्हीं के माध्यम से एक बैंक मैनेजर के सम्पर्क में आए और किसी तरह अपने बचाये 300 रूपये तथा पिता की आमदनी से बचाये 3200/-रूपये की बदौलत इन्होंने एक टै्रक्टर खरीदा और दिन रात मेहनत कर अपने व्यवसाय को खूब आगे बढ़ाया।
अपने जीवन में आदर्श पुरूष का दर्जा भी यह लाला पन्ना लाल को ही देते हैं । आदर्श महिला का दर्जा यह अपनी माता जी को देते हैं जिन्होने हर कदम पर इनका साथ दिया। इनके आदर्श शिक्षक मैडम सुनीता रही हैं । पिता पहलवान थे जिनकी देखादेखी में यह भी दंड बैठक करते थे और घर का घी – दूध होने की वज़ह से खूब घी- दूध खाने के शौकीन थे और इन्होंने भी अपने पिता की तरह दो मालियां जीती। एक माली मतरालियों में चिरंजी पहलवान को हराकर तथा दूसरी माली बरोटीवाली के बलवीर पहलवान को हराकर जीती। फिर पिता जी की सलाह पर पहलवानी छोड़ दी। धीरे-धीरे व्यापार का सिलसिला शुरू हुआ तथा पहला ट्रेक्टर 1972 में खरीदा और दिनरात एक कर रेत बजरी से खूब पैसा कमाया। एक साल तक कड़ी मेहनत कर ठेकेदारी की। विभिन्न तरह के काम करते हुए ट्रकों की श्रृंखला बनाई तथा अपना शौक पूरा करने के लिए बुलेट मोटर साईकिल व कार एनई118 खरीदी। सीसीआई में भी खूब काम किया। विद्युत विभाग में भी ठेकेदारी की और आरा मशीन भी लगाई। जंगलों में विभिन्न ठेके लिए तथा हर 5 साल बाद काम बदलते हुए आज शहर के जाने-माने व्यवसायी के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने कुछ समय प्रोपर्टी डीलर का काम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी किया।
महेन्द्र सिंह का विवाह 24 फरवरी 1975 को जामनीवाला निवासी बलदेव कौर से हुआ। इनके ससुर जाने-माने व्यक्ति थे। बलदेव कौर से दो बेटियॉं अमृतकौर तथा मनदीप कौर व एक पुत्र गुरदीप सिंह ;गैरीद्ध इनके जीवन बहार में आए। अमृत कौर डाईवाला के जमीदार परिवार में ब्याही है तथा छोटी मनदीप कौर चंडीगढ़ के एक प्रतिष्ठित परिवार में ब्याही हैं तथा दोनों बेटियॉं अपने- अपने परिवार में अपना वैवाहिक जीवन सुखपूर्वक बिता रही हैं। एकमात्र पुत्र गुरदीप सिंह पंजाब के बड़े जेलदार एवं एडवोकेट जनरल पटियाला ;पंजाबद्ध जगमोहन सिंह सैनी जिनके पूर्वजों को लगभग 52 हजार बीघे जमीन जेलदारी में मिली हुई है, की सुशिक्षित पुत्री भवनप्रीत कौर से ब्याहे हैं। इनके एकमात्र पौत्री व एकमात्र पौत्र हैं । पौत्री हरनम कौर हैं जिसे प्यार से निनिया कहते हैं तथा पौत्र जो इन्हें अपने पुत्र से भी प्यारा है उसका नाम इन्होंने गुरअभयवीर सिंह स्वयं रखा जिसे प्यार से गेबू कहकर बुलाते हैं। अपना आदर्श गुरू दमदमा साहब पंजाब के बाबा मिट्ठा सिंह को मानते हैं जिनसे वर्ष 1976-77 में इनकी भेंट हुई और उन्हीं से इन्होंने धार्मिकता के गुर सीखे। यह हर माह की 18 तारीख को गुरूद्वारा साहब में अंखड पाठ रखते हैं जिसकी प्रेरणा इन्हें अपनी बहु से मिली जिसे यह अपनी बेटी का दर्जा देते हैं। यह समय-समय पर खूब दान -दक्षिणा भी गरीबों में बांटते हैं तथा हर माह गुरू का खुला लंगर इनकी और से दिया जाता है। इनके अनेकों स्टोन क्रेशर तथा एक बैंकेट हॉल भी है तथा भारी मात्रा में कृषि योग्य भूमि। महेन्द्र सिंह को गुरूद्वारों, मन्दिरों, मस्ज़िदों में जाकर सेवा करना खूब अच्छा लगता है तथा यह किसी भी धर्म जाति में भेदभाव नहीं करते और अपने दादा जी से मिली धर्म के प्रति आस्था की प्रेरणा को यह अपने अन्दर समाये हुए हैं और उन्हीं नक्शे कदम पर चल रहे हैं। इनके पिता जी जहॉं भगवान हनुमान जी की सि(ी प्राप्त किये हुए थे वहीं दादा ख्वाज़ा साहब की सि(ी लिए हुए। जो धार्मिकता के गुण इन्हें विरासत में मिले हैं वहीं इन्होंने आगे अपने बेटे को भी दिये हुए हैं। दुनिया में सबसे अधिक स्नेह अपने पोते से करते हैं तथा स्वयं इन्हें अपने माता-पिता से ही सबसे अधिक स्नेह मिला है। इन्हें सबसे पहले खुशी अपने बेटे के जन्म पर हुई थी तथा दूसरी खुशी जब बेटा आस्ट्रेलिया से एमबीए कर घर वापिस आया और तीसरी बार इन्हें सबसे अधिक खुशी अपने पोते के जन्म पर हुई थी। दुःख इन्हें अपने माता-पिता के देहान्त पर ही सबसे अधिक हुआ है। अपनी बहु की सबसे अच्छी बात इस बात को मानते हैं कि वह घर में नौकर-चाकर होने के बावजूद आज भी इन्हें अपने हाथ से बनाकर ही खाना खिलाती है। खाने में सबसे अधिक साबुत उड़द की दाल तथा बासमती के चावल इन्हें पसन्द हैं। इनका शौक स्वस्थ रहना तथा पैसा कमाना है।

आलिया इकबाल

हरगुण