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सकारात्मक चुनाव की जीत

दिल्ली चुनाव के नतीजे आ गए है और जैसा अनुमान था नतीजा उसी तरह के आए है।इस चुनाव से दो बाते सामने आई है,एक तो यह की ईवीएम पर लोगो को थोड़ा भरोसा हुआ,दूसरा जनता ने सांप्रदायिक ध्रवीकरण को नकार कर विकास पर वोट किया।दिल्ली की जनता ने यह दिखा दिया की नेता नही जनता सर्वोपरि है, वह जिसे जहां रखना चाहती है उसे वहीं रहना पड़ेगा।वास्तव में होना भी यही चहिए,तभी लोकतंत्र की प्रासंगिकता बनी रहेगी।दिल्ली चुनाव में जिस तरह का प्रचार हुआ उससे राजनीति ही नही, हर बात का स्तर गिर गया। पद की गरीमा नही रही। शब्दों की मर्यादा तार तार हो गई।केन्द्रीय मंत्रियों ने संवैधानिक पद पर रहकर जिस तरह की भाषणबाजी की, भारत के इतिहास मे यह बिलकुल अलग थी।लेकिन जनता ने उसका करारा जबाब दिया है।जनता ने नफरत का जहर ऊगलने वाले नेताओं को यह सबक सीखा दिया है कि जो विकास नही करेगा उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा।इससे यह बात साबित हो गई कि सत्ता की चाबी नेताओं के पास नही बल्कि जनता के पास है। इस बार के दिल्ली चुनाव पर देश ही नही विदेशों की भी निगाह थी।भाजपा ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का चुनाव बना लिया था।गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव की कमान अपने हाथ ली थी और गली गली में प्रचार किया लेकिन उनकी सारी की सारी मेहनत पर उनके अपने ही नेताओं ने पानी फेर दिया।जिस तरह से शाहीन बाग हिन्दू मुसलमान के नाम पर गलत ब्यानबाजी की गई उससे दिल्ली की जनता नाराज हो गई और विकास को प्राथमिकता दी। केजरीवाल ने अपनी सरकार की पांच साल की उपलब्धियों पर वोट मांगा था ओर कहा था की अगर उनकी सरकार ने काम नहीं किया है तो उनको वोट मत दो, अगर काम किया है तो उनको वोट दो।जनता ने वही किया।दिल्ली चुनाव से देश और पार्टीयों के लिए एक संदेश है कि जो विकास नही करेगा उसे जनता सबक अवश्य सिखाऐगी। कांग्रेस के लिए यह चुनाव शुभ संकेत नहीं रहे जिस तरह सभी 70 विधानसभा चुनावों में जिस तरह कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई वह कांग्रेस के लिए काफी चिंता की बात है।इस तरह जहॉं राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का इस तरह से इतना खराब प्रदर्शन जहॉं चिंता का विषय है वहीं भाजपा के लिए भी यह कोई सुखद संदेश नहीं है।

आरव

हंसमुख प्रवृत्ति की महिला हैं सीमा बोस(सेवानिवृत्त अध्यापिका)