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कुल्लु मे होगी अनोखी होली

हिमवंती मीडिया /कुल्लु(रमेश कँवर)
कुल्लू के एतिहासिक मैदान ढालपुर में गणतंत्र दिवस के साथ बसंतोत्सव भी मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के मौके पर भगवान रघुनाथ की भव्य रथ यात्रा के साथ ही यहां 40 दिन तक चलने वाली ऐतिहासिक होली का आगाज भी किया जाएगा । रथ यात्रा में अधिष्ठाता रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह सहित राज परिवार के सभी सदस्य मौजूद रहते हैं।

ऐसे शुरू होती है भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा

जैसे ही सूर्य अपनी किरणों से चारों दिशाओं को प्रकाशमय करेगा तो भगवान रघुनाथ की पालकी सजनी शुरू हो जाएगी। दोपहर होते ही भगवान रघुनाथ को पालकी में भक्त और हारियान सुलतानपुर मंदिर से ढालपुर के रथ मैदान में लाते हैं। इसके बाद श्री रघुनाथ सिया और लखन सहित भव्य रथ में सवार होंगे। दोपहर बाद रथ को हजारों लोग रस्सी के सहारे खींचेंगे और ढालपुर मैदान के मध्यभाग तक लाएंगे। इस दौरान रघुनाथ जी के जयकारों से समूची रघुनाथ नगरी गूंज उठती है।

रथ की डोर को स्पर्श कर पुण्य कमाते लोग

श्री रघुनाथ जी रथ यात्रा के दौरान रथ की डोर को स्पर्श कर शुभ और पुण्य माना है। भजन-कीर्तन करते हुए महिलाएं और अन्य लोग श्री रघुनाथ जी के साथ चलते हैं। शाम को रघुनाथ जी के रथ को वापस रथ मैदान पहुंचाया जाता है। रथ यात्रा के बाद श्री रघुनाथ को पालकी में बिठाकर उनके मूल मंदिर सुल्तानपुर ले जाया जाता।

हनुमान का रंग चढ़ते ही मन्नतें पूरी

रथ यात्रा शुरू होने से पूर्व हनुमान का रुप धरे वैरागी समुदाय के एक अपने केसरी रंग के साथ लोगों के बीच जाते हैं। लोगों का केसरी नंदन के साथ स्पर्श हो, इसके लिए लोग उसके पीछे भागते हैं। मान्यता है कि जिन लोगों को हनुमान का केसरी रंग लगता है तो उनकी मन्नतें पूरी मानी जाती है। इस दिन अधिकतर स्त्रियां पीले व सफेद वस्त्र पहनकर आती है। केसरी नंदन की कृपा दृष्टि लोगों के ऊपर पड़े, इसलिए उसके आगे आने के लिए लोग लालायित रहते हैं।

राम-भरत का मिलन होता है आकर्षण का केंद्र

बसंत पंचमी के अवसर पर रथ यात्रा से पूर्व ढालपुर में राम-भरत मिलन की रस्म निभाई जाती है। भरत दंडवत होकर यहां से श्री राम से मिलने आते हैं। श्री राम अपने अनुज को उठाकर गले लगते हैं। यहां राम-भरत के भव्य मिलन का यह दृश्य बड़ा ही भावुक करने वाला होता है। राम-भरत मिलाप के इस मार्मिक दृश्य को देखकर सभी की आंखें भर आती हैं।

कुल्लू की होली का इतिहास

ऐतिहासिक पहलु के अनुसार कुल्लू जनपद में राजा जगतसिंह का शासनकाल वर्ष 1637 से 1662 तक रहा। इसी दौरान आयोध्या से भगवान राम की मूर्ति भी कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए यहां लाया गया था। उसके बाद यहां इस पर्व को मनाने की रिवायत शुरू हुई जो आज तक कायम है। श्री रघुनाथ की रथ यात्रा के साथ यहां की 40 दिनों तक चलने वाली ऐतिहासिक होली का आगाज होगा। बैरागी समुदाय के लोग होली की इस परंपरा का निर्वाहन करते हैं। 40 दिनों तक यहां हर दिन भगवान रघुनाथ को गुलाल लगाया जाएगा।

होली उत्सव में वैरागी समुदाय की होती है खास भूमिका

बसंत पंचमी से शुरू होने वाली कुल्लू की इस खास होली उत्सव में वैरागी समुदाय के लोगों की भूमिका अहम होती है। खासकर इन 40 दिनों में बैरागी समुदाय के लोग होली की इस परंपरा का निर्वाहन करते हैं। इन दिनों बैरागी सुमदाय के लोग भगवान रघुनाथ के मणिकर्ण, मकराहड, नग्गर के ठावा आदि क्षेत्र में ढफली और ढोलक लेकर जाते हैं और वृज के होली गीत गाते हैं। चालीस दिनों तक यह टोली अलग-अलग क्षेत्र में नाच गाकर यह रस्म निभाते हैं। होली के ठीक आठ दिन पूर्व यहां होलाष्टक पर्व मनाया जाता है। देश की होली से एक दिन पूर्व यहां बड़ी होली मनाई जाती है। होलिका दहन के साथ होली उत्सव का समापन होगा।

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