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क्या फायदेमंद रहेगी कांग्रेस के लिए प्रियंका

इसी वर्ष गर्मियों में देश आम चुनाव की आहट के साथ नई सरकार के गठन की प्रक्रिया में है। गत चुनाव में कांग्रेस की जितनी कम सीटें आई उससे कांग्रेस के लिए सबसे कठिन दौर रहा है। एक तरह से 2014 के चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह सुपड़ा साफ हो गया था। देश के सबसे बड़े राज्य जहॉं कुल 543 लोकसभा सीटों में से 80 सीटें इसी प्रदेश की हैं, में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें ही मिली थी और वह भी गांधी नेहरू परिवार के लोगों के हिस्से में ही आई थी। रायबरेली से जहॉं सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी ही कांग्रेस की तरफ से लोकसभा में पहुॅंचने में कामयाब हुए थे।
कांग्रेस की लोकप्रियता धीरे-धीरे कम होती नज़र आ रही थी और उस पर सोनिया के बीमार रहने से कांग्रेस की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। राहुल गांधी को पहले उपाध्यक्ष और अभी पिछले ही वर्ष अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की विचारधारा के लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की गई लेकिन राहुल गांधी कांग्रेस को वो मुकाम नहीं दे पाए जो उसका अतीत रहा है। कांग्रेस की अप्रभावी भाषणशैली ने कांग्रेस को काफी पीछे धकेल दिया। गुजरात के चुनाव में कांग्रेस ने राहुल गांधी की सरपरस्ती में अच्छा प्रदर्शन करने में अवश्य सफलता पाई लेकिन भाजपा वहॉं चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब हो गई। पिछले दिनों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सरकार बनाकर मोदी व भाजपा को अवश्य चुनौती दी लेकिन भाजपा उत्तर प्रदेश व बिहार के भरोसे 2019 के चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित मान रही थी। उन्हें अपने नेता नरेन्द्र मोदी पर भरोसा जो है। मोदी के सामने राहुल कहीं टिकते ही नज़र नही आ रहे थे। इन तीनों राज्यों में चाहे कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली हो लेकिन वोट प्रतिशत का अंतर अधिक नहीं था। इसलिए आगामी चुनाव में जहॉं भाजपा के हौंसले बुलन्द दिखाई दे रहे थे वहीं कांग्रेस संभल-संभल कर खड़ा होने की कोशिश कर रही थी।
राहुल गांधी ने प्रियंका को तुरूप के इक्के के रूप में जो मैदान में उतारा है उससे उनकी राजनीतिक परिपक्वता दिखाई दे रही है जिससे कांग्रेसियों का मनोबल बढ़ना स्वाभाविक ही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर प्रियंका का राजनीति में प्रवेश हुआ है इससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में जहॉं नई जान आ गई है वहीं पूरे देश के कांग्रेसी भी खुश हैं। कांग्रेसी नेता तो आश्वस्त है कि प्रियंका गेम चेंजर है। उनके खुलकर मैदान में उतरने से उत्तर प्रदेश की बेचान पड़ी कांग्रेस में भी जान लौट आई है। उनकी हाज़िर जवाबी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से सीधा जुड़ाव और अपनी दादी की छवि उन्हें कांग्रेस के सभी कद्दावर नेताओं से आगे की श्रेणी में लाकर खड़ा करने में काफी है। वह ब्राह्मण प्रभाव वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी है जहॉं कांग्रेस परम्परा से बेहतर करती रही है। इसलिए उम्मीद है कि वह मोदी और योगी को सीधी चुनौती देने में कामयाब रहेंगी।
हालांकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी में गठबंधन हो चुका है और कांग्रेस को बिल्कुल भी महत्व न देते हुए उनके लिए केवल दो सीटों पर ही कांग्रेस को समर्थन देने की बात इस गठबंधन ने की है क्योंकि सपा और बसपा दोनों ही दलों के नेताओं का मानना था कि कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर है इसलिए उसे साथ लेने से कोई फायदा नहीं लेकिन प्रियंका के आने से आए बदलाव पर शायद बसपा और सपा को नये सिरे से कांग्रेस को भी गठबंधन में शामिल न करना पड़े। अगर ऐसा होता है तो मोदी और भाजपा ेके लिए और भी अधिक मुसीबतें ख ड़ी हो जायेंगी।

तेज तर्रार कांग्रेसी नेता असगर अली

आलिया इकबाल