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मन की बात 2.0’ की 13वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ

शिमला(पी.आई.बी):मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार I ‘मन की बात’ ने वर्ष 2020 में अपना आधा सफ़र अब पूरा कर लिया है| इस दौरान हमने अनेक विषयों पर बात की I स्वाभाविक है कि जो वैश्विक महामारी आयी, मानव जाति पर जो संकट आया, उस पर, हमारी बातचीत कुछ ज्यादा ही रही, लेकिन, इन दिनों मैं देख रहा हूं, लगातार लोगों में, एक विषय पर चर्चा हो रही है, कि, आखिर ये साल कब बीतेगा I कोई किसी को फोन भी कर रहा है, तो, बातचीत, इसी विषय से शुरू हो रही है, कि, ये साल जल्दी क्यों नहीं बीत रहा है I कोई लिख रहा है, दोस्तों से बात कर रहा है, कह रहा है, कि, ये साल अच्छा नहीं है, कोई कह रहा है 2020 शुभ नहीं है I बस, लोग यही चाहते हैं कि किसी भी तरह से ये साल जल्द-से-जल्द बीत जाए I

साथियो, कभी कभी मैं सोचता हूँ, कि, ऐसा क्यों हो रहा है, हो सकता है ऐसी बातचीत के कुछ कारण भी हों | 6-7 महीना पहले, ये, हम कहां जानते थे, कि, कोरोना जैसा संकट आएगा और इसके खिलाफ़ ये लड़ाई इतनी लम्बी चलेगीI ये संकट तो बना ही हुआ है, ऊपर से, देश में नित नयी चुनौतियाँ सामने आती जा रही हैं| अभी, कुछ दिन पहले, देश के पूर्वी छोर पर Cyclone Amphan आया, तो, पश्चिमी छोर पर Cyclone Nisarg आया I कितने ही राज्यों में हमारे किसान भाई–बहन टिड्डी दल के हमले से परेशान हैं, और कुछ नहीं, तो, देश के कई हिस्सों में छोटे-छोटे भूकंप रुकने का ही नाम नहीं ले रहे, और इन सबके बीच, हमारे कुछ पड़ोसियों द्वारा जो हो रहा है, देश उन चुनौतियों से भी निपट रहा है I वाकई, एक-साथ इनती आपदाएं, इस स्तर की आपदाएं, बहुत कम ही देखने-सुनने को मिलती हैं I हालत तो ये हो गयी है, कि, कोई छोटी-छोटी घटना भी हो रही है, तो, लोग उन्हें भी इन चुनौतियों के साथ जोड़कर के देख रहें हैंI

साथियो, मुश्किलें आती हैं, संकट आते हैं, लेकिन, सवाल यही है, कि, क्या इन आपदाओं की वजह से हमें साल 2020 को ख़राब मान लेना चाहिए? क्या पहले के 6 महीने जैसे बीते, उसकी वजह से, ये, मान लेना कि पूरा साल ही ऐसा है, क्या ये सोचना सही है ? जी नहीं I मेरे प्यारे देशवासियो – बिल्कुल नहीं I एक साल में एक चुनौती आए, या, पचास चुनौतियां आएँ, नंबर कम-ज्यादा होने से, वो साल, ख़राब नहीं हो जाता I भारत का इतिहास ही आपदाओं और चुनौतियों पर जीत हासिल कर, और ज्यादा निखरकर निकलने का रहा है I सैकड़ों वर्षों तक अलग- अलग आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया, उसे संकटों में डाला, लोगों को लगता था कि भारत की संरचना ही नष्ट हो जाएगी, भारत की संस्कृति ही समाप्त हो जाएगी, लेकिन, इन संकटों से भारत और भी भव्य होकर सामने आया I

साथियो, हमारे यहां कहा जाता है – सृजन शास्वत है, सृजन निरंतर है I

मुझे एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं 

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?

युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा I

उसी गीत में, आगे आता है –

क्या उसको रोक सकेंगे, मिटनेवाले मिट जाएं,

कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए I

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