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10 प्रतिशत आरक्षण एक बड़ी राजनीतिक पहल

मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को दस प्रतिशत आरक्षण देने का जो फैसला लिया है वह महज एक बड़ी राजनीतिक पहल ही नही बल्कि आरक्षण के दायरे से बाहर के गरीबों के लिए एक बड़ा तोहफा भी उभरकर सामने आया है। यह फैसला आर्थिक असमानता के साथ -साथ जातीय वैमनस्य को दूर करने की दिशा में भी एक कारगर कदम है। मोदी सरकार के यह फैसला इसलिए सही माना गया है क्योंकि यह उन सवर्णों के लिए एक बड़ा सहारा है, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद आरक्षित वर्ग जैसी सुविधा से वंचित हैं। जिस कारण वह लोग खुद को असहाय-उपेक्षित तो महसूस करते ही रहे हैं, साथ ही उनके मन में आरक्षण यवस्था को लेकर असंतोष भी उपज रहा था। इस स्थिति को दूर करना सरकार का नैतिक दायित्व था।
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का मोदी सरकार का यह फैसला ‘सबका साथ सबका विकास’ की अवधारणा के अनुकूल भी है। इस फैसले को लेकर ऐसे तर्कों का कोई मूल्य नहीं कि मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक हित को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया हो, क्योंकि राजनीतिक दलों के फैसले राजनीतिक हित को ध्यान में रखकर ही लिए जाते हैं। जनहित के सारे फैसले कहीं न कहीं राजनीतिक हित को ध्यान में रखकर ही लिए जाते हैं। इस फैसले की एक महत्ता यह भी है कि यह आरक्षण राजनीति को खत्म करने में सहायक बन सकता है। सामाजिक न्याय के तहत अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का फैसला एक राजनीतिक फैसला ही था।
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद अब इस सोच को बल मिलेगा कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर लोगों के साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भी कुछ करने की जरूरत है। कई विपक्षी दलों को यह समझना मुश्किल हो रहा है कि वे मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध करें भी तो कैसे? उनके सामने मुश्किल इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि अतीत में वे स्वयं आर्थिक आधार पर आरक्षण की पैरवी और मांग करते रहे हैं। विपक्षी दलों की इसी मुश्किल के कारण इसके आसार हैं कि आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण के फैसले संबंधी विधेयक पर संसद की मोहर लग जाएगी। लेकिन यह कहना कठिन है कि यह विधेयक कानून का रूप लेने के बाद होने वाली न्यायिक समीक्षा में खरा उतर पाएगा या नहीं?
ऐसा इसलिए, क्योंकि एक तो संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात नहीं है और दूसरे, सर्वोच्च न्यायालय यह फैसला दे चुका है कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस फैसले के बावजूद यह एक तथ्य है कि देश के कई राज्यों में आरक्षण सीमा 60-65 प्रतिशत तक जा चुकी है। आर्थिक आधार पर आरक्षण संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा की नौबत चाहे जब आए, इसकी अनदेखी नही की जानी चाहिए कि संविधान का मूल उद्देश्य लोगों की भलाई है और वह देश के लोगों के लिए ही बना है।

हिमांशी

संघर्ष का दूसरा नाम जगत सिंह नेगी (पूर्व विधायक)