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प्रशासनिक दक्षता के साथ-साथ साहित्य प्रेमी एवं शिक्षाविद भी हैं प्रभात शर्मा ‘प्रभात

चम्बा जनपद में छतराड़ी क्षेत्र में दूर दराज के परगना पीयूरा के गांव गीयूंरा के एक लब्ध प्रतिष्ठित परिवार में माता बन्तो देवी और पिता सफरी राम शर्मा के घर पर 29 जून 1954 को जन्मे प्रभात शर्मा अपनी मेहनत एवं असाधारण प्रतिभा के बल पर न केवल प्रशासनिक सेवा के सर्वोच्च पदों पर ही कार्यरत रहे अपितु अपने सरकारी व्यवसाय के अन्तिम चरण में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के सचिव पद से सेवानिवृत्त भी हुए। इनके पूर्वजों का संबंध जहां दुर्गम व दूर दराज के छतराड़ी क्षेत्र से था, वहां इनके पिता ने कांगड़ा जिला के जोल -छतड़ी में भी अपना स्थाई आवास बनाया,इसलिए प्रभात शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा छतड़ी-सिहुंआं, तदुपरांत मैट्रिक तक शाहपुर विद्यालय में और फिर संस्कृत विषय में आनर के साथ प्रवीण स्नातक की उपाधि हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय के अन्तर्गत राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला से इन्होंने प्राप्त की। स्नातक बनने के बाद कुछ समय तक एक निजी विद्यालय में संस्कृत-अध्यापक के रूप में भी इन्होंने कार्य किया। इसके उपरांत सितंबर 1976 में वन -रक्षक के रूप में तथा जून 1977 में राजस्व विभाग में बतौर कानूनगो नियुक्ति होने पर इनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदले और यह पूर्ण रूप से राजस्व एवं भू-व्यवस्था से जुड़ते चले गए। कानूनगो के रूप में नियुक्ति के बाद भू-व्यवस्था एवं मुहाल का प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत खुंडियां तथा धौलाधार प्रोजेक्ट पालमपुर में भी अपनी सेवाएं प्रदान कीं। तत्पश्चात नायब तहसीलदार के रूप में उपायुक्त कार्यालय कांगड़ा के साथ -साथ एन एच पीसी बनीखेत, मंडलायुक्त कार्यालय धर्मशाला तथा चम्बा की पांगी-घाटी में सेवाएं प्रदान करने के पश्चात जब तहसीलदार के रूप में पदोन्नति हुई तो सर्वप्रथम मन्दिर अधिकारी, चिन्तपूर्णी और फिर भटियात, सुन्दर नगर, पांगी-घाटी, हमीरपुर और मंडी आदि में कार्य करने के उपरांत हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा में आने पर ए सी टू डी सी बिलासपुर, मंडी तथा उप मंडल अधिकारी (ना.) पांगी – किलाड़ में कार्य करते हुए सन् 2008 में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड, धर्मशाला में सचिव पद पर जून 2012 तक अपनी सेवाएं प्रदान कीं। अपने व्यवसाय के मध्य वर्ष 1997 में इन्होंने पांगी-घाटी में बतौर तहसीलदार अपनी सेवाएं देते हुए न केवल उप मंडल अधिकारी (ना.) के रूप में ही अपनी सेवाएं दीं अपितु आवासीय आयुक्त के रूप में भी इकहरी प्रशासनिक प्रणाली के अन्तर्गत समस्त सरकारी विभागों के उत्तरदायित्व को सफलता पूर्वक निभाने का सराहनीय प्रयास भी किया। सचिव, स्कूल शिक्षा बोर्ड रहते हुए भी इन्होंने जहां शिक्षकों, शिक्षार्थियों एवं बोर्ड – कर्मचारियों के हित में कई प्रशासकीय कदम उठाए, वहां स्टेट ओपन स्कूल की अवधारणा को सफल बनाते हुए बोर्ड के समस्त कार्यों का कम्प्यूटरीकरण करने के लिए लगभग पांच करोड़ के बजट का प्रावधान करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी को सुदृढ़ करने का प्रयास भी किया। बोर्ड कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित करने के लिए चार ट्रस्टों की भी स्थापना की, जिनमें पैन्शन कोश ट्रस्ट अति महत्वपूर्ण निर्णय था, जिसमें दस लाख की राशि संचित करके उसका शुभारंभ किया इन्होंने ही किया।इसी के साथ-साथ एक बहुत बड़े परीक्षा एवं नकली प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए, उसके विरुद्ध एफ आई आर भी दर्ज करवाने की हिम्मत इन्होंने ही की थी।
अपने जीवन के समस्त प्रशासकीय अनुभवों को यह महत्वपूर्ण तो मानते ही हैं परंतु पांगी-घाटी के विभिन्न चरणों के लगभग दस वर्षों के कार्यकाल को यह बहुत अधिक अविस्मरणीय मानते हैं। एक कुशल प्रशासक के रूप में इनका हर संभव प्रयास रहा कि यह कार्यालय में बैठकर काम करने के साथ-साथ समय-समय पर दूर दराज बसे लोगों, विशेषकर बुजुर्गों के बीच स्वयं जाकर उनके दुःख-दर्द को साझा करके लोक-कल्याण की भावना रखते हुए सरकारी सहायता तक पहुंचाने का प्रयास भी करते रहे हैं। पांगी-घाटी में लोगों की समस्याओं को समझने के लिए इन्होंने पंगवाली एवं भोटी भाषा को भी सीखा और पंगवालों एवं भोटों की भावनाओं को समझते हुए, उनके घर-द्वार पर जाकर उनकी सहायता की। यही कारण है कि पांगी के लोग आज भी इन्हें अपना ही आदमी व हित-चिन्तक मानते हैं और यह भी सेवा निवृत्ति के बाद लगभग हर वर्ष पांगी-घाटी की यात्रा पर अवश्य ही जाते हैं। पांगी-घाटी के विकासात्मक कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करवाने, सड़कों के निर्माण तथा बस सेवा को साचपास के रास्ते पहुंचाने, मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ अति दूर स्थित भटौरियों में गोम्पा बनवाने आदि-आदि के कार्य, जो भी इनके कार्यकाल में हुए हैं, समस्त पांगी वासी आज भी इनके योगदान की सराहना करते हैं। घाटी में शिक्षा की लौ को जगाने के लिए भी इनकी भूमिका विद्यालयी स्तर से लेकर महाविद्यालय और आई टी आई की स्थापना तक में महत्वपूर्ण रही है।बोर्ड सचिव के रूप में भी इन्होंने घाटी के विद्यालयों को कई शैक्षणिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश की, जिनके लिए वहां के निवासी आज भी आभार ज्ञापित करते हैं।
पांगी-घाटी में ही नौकरी के दौरान दो अति विशिष्ट महान हस्तियों को काल के मुंह में जाने से बचाने का सफल प्रयास भी इन्होंने किया। एक बार फिंडरू-फिंडपार के लिए बने चन्द्र भागा के पुल के उद्घाटन के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह जी के साथ बागवानी मंत्री सत्यप्रकाश ठाकुर जी थे और प्रभात शर्मा जी उस समय उप मंडल अधिकारी (ना.) के रूप में प्रशासनिक उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए साथ थे। उद्घाटन के मध्य ही चन्द्र भागा की ढांक के नजदीक ही सत्यप्रकाश ठाकुर जी का पैर जरा-सा क्या फिसला कि वह लड़खड़ा कर गिरने को ही हुए कि प्रभात शर्मा जी ने एकदम कसकर पकड़ करके उन्हें नीचे गिरने से बचा लिया। यदि पलक झपकने की भी देर हो जाती तो कोई भी अनहोनी घटित हो सकती थी। आज भी सत्यप्रकाश ठाकुर उस दृश्य को स्मरण कर सिहर उठते हैं और प्रभात शर्मा का धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के सचिव पद से सेवानिवृत्ति के उपरांत इन्होंने अपने को पूर्ण रूप से यायावरी, साहित्य सेवा एवं प्रशासनिक सेवा – नियमों आदि का प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए समर्पित कर दिया है। भू-व्यवस्था संबंधी विभिन्न समस्याओं का समाधान तो यह सुझाते ही हैं, एक कुशल स्रोत व्यक्ति के रूप में विभिन्न विभागों, विशेष रूप से राजस्व, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि विभागों से जुड़े अधिकारियों को सेवा नियमों के साथ-साथ सूचना का अधिकार आदि पर विस्तार के साथ जानकारी व सुझाव प्रेषित करते हैं। साहित्य के प्रति लगाव को आगे बढ़ाते हुए जहां इनकी एक पुस्तक मनमोहक देवधरा पांगी प्रकाशित हो चुकी है, वहां कई शोधात्मक एवं लोक-सांस्कृतिक विषयक आलेख भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी, पहाड़ी एवं संस्कृत कविता पर भी इनकी मजबूत पकड़ है और जहां यह कई मंचों पर इनकी सुन्दर प्रस्तुतियां भी दे चुके हैं।

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