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देखना होगा मोदी का कद बढ़ेगा या नहीं

हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हो चुकेे हैं लेकिन इन दोनों राज्यों में ही मतदाता मतदान के प्रति उत्साहित नहीं दिखे। हरियाणा में तो 19 साल में इस बार सबसे कम वोटिंग हुई। यही नहीं महाराष्ट्र में भी 2014 विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कम मतदान हुआ। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में नई सरकार चुनने के लिए मतदाताओं ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। हरियाणा में पिछले कई चुनावों में लगातार 70 प्रतिशत से अधिक मतदाता अपने मतदाताधिकार का प्रयोग करते आए हैं लेकिन इस बार 64.35 प्रतिशत मतदाता ही मतदान के लिए मतदान केन्द्र पर पहुॅंचे। महाराष्ट्र में भी कमोवेश कम ही मतदाता मतदान के लिए अपने घरों से कम ही निकले।
प्री-पोल बता रहे हैं कि इन दोनों ही राज्यों में भाजपा फिर से सत्तासीन होने जा रही है। लेकिन दोनों ही राज्यों में जो मत प्रतिशत घटा है इससे यह तो साफ हो गया है कि भाजपा की लोकप्रियता में या तो कमी आई है या लोग सभी राजनैतिक दलों से ऊब चुके हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में भाजपा ने हरियाणा की पारम्परिक राजनीति को चुनौती देते हुए गैरजात मनोहर लाल खट्टर को तथा महाराष्ट्र में गैर मराठा, देवेन्द्रपड़ नवीस को मुख्यमंत्री बनाया था और इसब ार भी इन दोंनो चेहरों को ही आगे रखकर चुनाव पड़े हैं। इन्हें विपक्ष से कोई चुनौती मिली है या नहीं यह तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा लेकिप प्री-पोल मुख्य रूझानों के अनुसार भाजपा इन दोनों राज्यों में ही ओर अधिक सीटें पाकर काबिज़ होने जा रही है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जो उपचुनाव हो रहें हैं वह भी भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी बड़े महत्वपूर्ण है क्योंकि इन दोनों राज्यों में एक-एक सीट का ही बहुत महत्व है। यदि इन दो राज्यों में भाजपा उप चुनाव में हार जाती है तो यह उसकी साख पर बड़ा धब्बा होगा।
हिमाचल में दो सीटों पर उपचुनाव हुआ है यह दोनों ही सीटें भाजपा के विधायकों के इस्तीफा देने से व लोक सभा में पहुॅंचने पर हुई खाली सीट पर हुए हैं हालांकि सिरमौर जिला के पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र व धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र से लोक सभा चुनाव में इन्हीं क्षेत्रों से जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उदोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में विद्रोही उम्मीदवारों के खड़े होने से मामला काफी बेचिदा हो गया है। सिरामौर के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की विद्रोही नेता दयाल प्यारी जीत की दौड़ में थी। इन्होंने जिस तरह चुनाव लड़ा उससे ऐसा लग रहा है कि उनकी मंशा भाजपा को चुनान हराना नहीं बल्कि खुद चुनाव जीतना है। यहां से कांग्रेस ने भी अपने अनुभव व सात बार चुने जाने वाले अनुभवी उम्मीदवार गंगूाराम मुसाफिर को मैदान में उतारा है इसलिए इस विधानसभा क्षेत्र में तो माला काफी रोचक हो गया है और तीनों ही उम्मीदवारांे के प्रशंसक अपने-अपने उम्मीदवार की जीत का दम भर रहे हैं।अगर हिमाचल में किसी एक सीट पर भी भाजपा हार जाती है तो यह राज्य सरकार के लिए एक बडी हार होगी।

गुरेन्द्र

प्रशासनिक दक्षता के साथ-साथ साहित्य प्रेमी एवं शिक्षाविद भी हैं प्रभात शर्मा ‘प्रभात