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छोटे व्यापारियों को राहत की आवश्यकता

छोटे और मध्यम उद्योग कारोबार का देश के औद्योगिक उत्पादन में 40 फीसदी तथा निर्यात में करीब 40 प्रतिशत योगदान है। लेकिन विश्व में आई औद्योगिक सुस्ती के कारण अधिकांश इकाईयाॅं परेशानियों से जूझ रही हैं। इस समय आर्थिक सुस्ती से जो इन सुक्ष्म, लघु और मंझोले कारोबारियों द्वारा सरकार से बड़ी रियायत की अपेक्षा की जा रही है। इन छोटे कारोबारियों का मानना है कि छोटे उद्योगों को विभिन्न श्रेणियों में बांटकर तत्काल राहत मुहैया कराई जाए। अभी तक देश में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र दो ही श्रेणियां हैं। इससे बदहाल उद्योगों की पहचान करना मुश्किल है इसीलिए छोटे उद्यमी व कारोबारी चाहते हैं कि उन्हें कई श्रेणियों में बांटा जाए ताकि दिक्कतों का समाधान हो सके। विभिन्न सेक्टरों में बंट जाने पर ही छोटे उद्यमी व कारोबारी जीएसटी रिफंड के साथ दूसरी रियायतें भी पा सकेंगे।
यदि छोटे और मंझले उद्योगों को श्रेणीब( कर दिया जाए तो इससे उनकी आर्थिक सूझबूझ बढ़ेगी और क्रेडिट प्रभाव में भी सुधार होगा। देश की जीडीपी में छोटे और मध्यम कारोबार का हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है और इसके अन्तर्गत साढ़े 6 करोड़ इकाईयाॅं आती हैं जो 15 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं। यदि इस क्षेत्र को सरकार अकेले पांच वर्षों में रियायत दे देती है तो उनकी भागीदारी 50 प्रतिशत तक पहुॅंच सकती है। पूरे विश्व में ही आर्थिक मंदी के चलते छोटे उद्योगों की अधिकांश इकाईयाॅं महंगे कर्ज़ बिजली समस्या, उत्पादित माल की मांग में कमी, खरीदारों से भुगतान भुगतने, टैक्सेशन, कर सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बड़े उद्योग और बड़े उद्यमी छोटे उद्यमियों पर भारी पड़ रहे हैं और उन्हें फलने-फूलने नहीं देना चाहते।
वैश्विक मंदी के इस दौर में सरकार को छोटी व मध्यम इकाईयों के कारोबार के लिए मदद देनी ही होगी तभी देश की वित्तीय और औद्योगिक संस्थाओं को मजबूती मिलेगी। नौकरशाही का अनावश्यक हस्तक्षेप भी इन उद्योगों के लिए स्पीड ब्रेकर का काम करता है इसलिए नौकरशाही का हस्तक्षेप कम करना होगा तथा जो सरकार इन उद्योगों के लिए सुधार कर रही है, उन्हें जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार को छोटे कारोबारियों को प्रोत्साहित करने के लिए और उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए अन्वेषण व डेवलपमेंट पर भी काफी ध्यान देना होगा जिससे नित नई रिसर्च का फायदा छोटे उद्योगपति भी उठा सकें। वित्त मंत्रालय को भी इन छोटे उद्योगपतियों को सस्ती दरों पर कर्ज़ दिये जाने की आवश्यकता है। तभी सूक्ष्म छोटी और मध्यम इकाईयां आर्थिक सुस्ती के दौर से बाहर निकल पायेंगी। अगर सरकार ने तत्काल इन समस्याओं का निदान नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए समस्या और बढ़ जायेगी तथा उनके अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। यदि सरकार वास्तव में छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ाना चाहती है तो उसे उनके उत्थान के लिए तुरन्त जहाॅं कारगर कदम उठाने पड़ेंगे तभी छोटे और मंझोले उद्योग अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब हो पायेंगे और देश की प्रगति में अपनी भूमिका अदा कर सकेंगे।

प्रज्ञान

बागी उम्मीदवार के तौर पर अपना भाग्य आजमा रही हैं श्रीमती दयाल प्यारी