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पंचायतीराज चुनाव में योग्यता मेट्रिक अथवा जमा दो की मांग लगी उठने

राजगढ़ ( प्रेे.वि )-
पंचायतीराज संस्थाओं का कार्यकाल इस वर्ष पूरा होने जा रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतीराज चुनाव को लेकर सरगर्मियां अभी से शुरू हो गई है और बुद्धिजीवी वर्ग हरियाणा और उतराखंड की तर्ज पर पंचायतीराज चुनाव के प्रत्याशी की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने बारे मांग ही जा रही है । बता दें कि हरियाणा और उतराखंड में पंचायत प्रधान की शैक्षिणिक योग्यता मेट्रिक रखी गई है जबकि महिलाऔं और अनुसूचित जति के प्रधान व अन्य सदस्यों की योग्यता आठवीं पास रखी गई है । अब हिमाचल प्रदेश में यह मांग जोर पकड़ रही है जिसकी शुरूआत सिरमौर से हो गई है और इस वर्ष के अंत तक हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव होना तय है । राजगढ़ के निजी स्कूल की प्रिसीपल नीना शर्मा, कमलेश कुमारी, रूपना हितेषी लीला चौहान सहित अनेक महिलाओं ने पंचायतीराज संस्थाओं में विशेषकर प्रधान कम से कम दस, जमा दो अथवा मेट्रिक होना चाहिए तभी पंचायत का कार्य सुचारू रूप से चल सकता है । रूपना हितेषी का कहना है कि जब प्रधान का पद सामान्य महिला अथवा अनुसूचित जाति वर्ग की महिला के लिए आरक्षित होता है उस स्थिति में कई बार अनपढ़ अथवा कम पढ़ी लिखी महिलाऐं प्रधान बन जाती है जिस कारण ऐसी महिलाऐं घर व कार्यालय के दबाव में कार्य करती है क्योंकि अधिकांश महिला प्रधान के पति ही प्रधान की शक्तियों का इस्तेमाल करते है दूसरी ओर कम पढ़ी लिखी महिला अथवा पुरूष के प्रधान बनने से पंचायत सचिव उन पर हावी रहते हैं । इसी प्रकार बुद्धिजीवी वर्ग में कमल स्वरूप और नवीन तोमर ने
भी पंचायतीराज चुनाव के लिए शैक्षणिक योग्यता होने की वकालत है । इनका कहना है कि पंचायत को प्रशासन की मूल इकाई मानी जाती है और यदि किसी भी इमारत की नींव ही कच्ची होगी तो वह ज्यादा दिन नहीं चल सकती है । साहित्यकार शेरजंग चौहान ने कहा कि जिस प्रकार हरियाणा व उतराखंड में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए मेट्रिक होना अनिवार्य किया गया है उसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में भी होना चाहिए । शेरजंग चौहान का कहना है कि कम शिक्षित प्रधान पंचायतीराज अधिनियम को ठीक से समझ भी नहीं पाते हैं । और ऐसे प्रधान ज्यादा कर दबाव में कार्य करते है । इनका कहना है कि सरकार द्वारा करोड़ों रूपये की राशि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सीधी पंचायत के खाते में डाली जाती है और कम शिक्षित प्रधान को पंचायत सचिव पर ही निर्भर रहना पड़ता है और ऐसे पंचायत पदाधिकारी सरकारी योजनाओं का सही परिप्रेक्ष्य में संचालन भी नहीं कर पाते हैं। इस बारे जब अतिरिक्त निदेशक पंचायतीराज केवल शर्मा से संपर्क करना चाहा तो वह प्रवास पर गए थे जबकि संयुक्त निदेशक अवकाश पर गए थे।

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