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तंत्र-मंत्रोपचार में सिद्धहस्त हैं शमशेर राणा

कई बार जब चिकित्सा विज्ञान पर मंत्र विज्ञान हावी हो जाता है तब इस ओर गंभीरता से सोचने को व्यक्ति बाध्य हो जाता है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ‘बेन इंजरी’ के 40 मरीजों पर डाक्टरों द्वारा महामृत्युंजय मंत्र जाप के असर की जांच किया जाना इसका सबल प्रमाण है। बहुत सारी घटनाएं ऐसी होती सुनी व देखी जाती हैं जब बड़े- बड़े अस्पतालों से हारकर घर बैठे रोगी तंत्र-मंत्र विद्या से ठीक होते देखे जाते हैं। इसी तंत्र मंत्रोपचार विद्या में एक सिद्धहस्त व्यक्ति हैं -शमशेर राणा। मेरे निकटतम मित्र व नजदीकी रिश्तेदार जो नाहन, चंडीगढ़ व दिल्ली तक उपचार कराकर हार चुके थे, जो पचास हजार मासिक की दवाइयों व खून चढ़ाने पर जैसे तैसे दिन काट रहे थे, जिनमें मात्र चार ग्राम खून रह गया था और हाथ पूरी तरह पीले पड़ चुके थे, डाक्टरों ने जिन्हें घर ले जाकर यथा संभव जो कुछ भी सेवा कर कुछ दिन काटने का स्पष्ट उल्लेख कर दिया था और एक परिचित लड़की जो झल्लाहट की स्थिति में अपनी नसों को काटने की स्थिति तक पहुंच चुकी थी – जब मैंने इन दोनों मरीजों को शमशेर राणा के पास जाकर एकदम पूरी तरह स्वस्थ होते देखा तो मुझे भी इनके बारे जानने व मिलने की इच्छा जागृत हुई। सिरमौर जनपद की पझोता घाटी के सनौरा गांव में पिता प्रताप सिंह राणा के घर माता उमावती की कोख से 6 मार्च 1965 को जन्में और तदुपरांत 1983 में स्थानीय विद्यालय से दसवीं शिक्षा प्राप्त, मनोरमा देवी से विवाह कर एक बेटे तथा एक बेटी से संयुक्त सुखी जीवन जी रहे शमशेर राणा ने बताया कि उन्हें आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए अचानक माता की ‘खेल’ आ गई थी जिसे उस समय पढ़ाई में बाधा समझकर घरवालों ने शांत करवा दिया था। किन्तु 1984 में दुधम गांव के विख्यात पंडित लेखराम शर्मा द्वारा एक भागवत कथा के अवसर पर पूर्णाहूति के समय फिर बड़े वेग में इन्हें माता की ‘खेल’ आई। स्वयं पंडित जी, जो इनकी माता के धर्मभाई भी थे, ने स्वयं इन्हें ‘खोजंतरी’ गणित विद्या सिखाने का आश्वासन दिया और तब इन्होंने उनसे चावलों के दानों से गणित विद्या को पूरी तरह से सीखा। अब इस विद्या की ओर इनकी रूचि जगी तो इसमें और अधिक पारंगत होने के उद्देश्य से त्यूणी के प्रसिद्ध तांत्रिक भूप सिंह से लगातार 27 दिन की कठोर साधना के साथ तंत्र -मंत्र विद्या को गहनता से सीखते रहे। तदुपरांत इस विद्या के अनुरूप विभिन्न तांत्रिक सफलता दायक स्थानों में जाकर अनेक साधनाओं के साथ इस विद्या में सिद्धि प्राप्त की। इनके ग्यारह गॉंवों में विशेष रूप से पूजी जाने वाली माता कटासन देवी की इन पर पूरी कृपा है और अपनी विद्या सफलता का पूरा श्रेय ये माता को ही देते हैं। कई बार देखा जाता है कि कुछ अनिष्टकारी लोगों द्वारा किसी के अनिष्ट के विचार से उनके घरों अथवा खेतो-खलिहानों में अनिष्टकारक सामग्री दबाई होती है जिसे ये दीपक चलाकर ढूंढ निकाल बाहर फैंक अपनी विद्या से निरस्त कर देते हैं और प्रभावित व्यक्ति का मंगल हो जाता है। ‘दीपक चलाना’ ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जलता हुआ दीपक मंत्र शक्ति से स्वयं चलते हुए चारों ओर घूम कर उस स्थान पर रूक जाता है जहॉं वह अनिष्ठकारी सामग्री दबी होती है। फिर उसे निकाल -फैंक कर किया जाता है तंत्रोपचार। इस निमित्त ये पूरे हिमाचल ही नहीं अपितु दिल्ली, राजस्थान आदि तक जा चुके हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता जो अन्य तांत्रिकों से प्रायः हटकर है, यह है कि ये इस उपचार में मुर्गे-बकरे आदि किसी भी जीव की बलि नहीं चढ़ाते, ऐसा करना ये पाप मानते हैं। केवल मंत्र शक्ति से अभिमंत्रित चावल, जौ, तिलक आदि से ये उपचार कर लेते हैं और अधिक से अधिक अपने ईष्ट शिरगुल के नाम ‘रोट’ तथा माता के नाम पर ‘कड़ाही’ अथवा नारियल की ही बात करते हैं। अपनी इस तंत्र -मंत्र विद्या में ये इतने सिद्धहस्त हैं, स्वभाव से उतने ही सरल व नेक दिल इन्सान हैं। ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ इनके जीवन में सार्थक होता नज़र आता है। बेटा पुलिस में नौकरी कर रहा है तथा ‘अर्थो हि कन्या परकीय एव….’ बेटी का विवाह कर इस दायित्व से मुक्त हो चुके हैं। अपने पुश्तैनी व्यवसाय कृषि व गोपालन से भी बराबर जुड़े हैं। वैसे तो प्रायः इनके घर पीड़ितों, जिज्ञासुओं तथा दुःखियों का तांता लगा रहता है तथापि यथासंभव समय निकालकर अपने कृषि कर्म में भी मस्त रहते हैं और अपनी शंका लेकर आये लोगों के साथ अधिकांश व्यस्त रहते हैं। इनके माध्यम से किसी का भला हो सके -इससे इन्हें बड़ी प्रसन्नता होती है और इस निमित्त मॉं भगवती की कृपा को सर्वोपरि मानते हैं।

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