in

उच्चतम न्यायालय की पहल स्वागत योग्य

चुनावों को निष्पक्ष बनाने के उद्देश्य से उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को जो निर्देश दिये हैं वह स्वागत योग्य हैं। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिये हैं कि वह आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए आदेश पारित करें ताकि तीन महीने के अन्दर-अन्दर राजनीतिक दलों को आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को टिकट देने से रोका जा सके। यह निर्देश हाल ही में 25 नवम्बर को उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग को निर्देशित किया गया है। उच्चतम न्यायालय की इस पहल का स्वागत किया जाना आवश्यक है। अब जब चुनाव आयोग उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों अनुसार 3 महीने में इस मुद्दे को लेकर आदेश पारित कर देगा तो चुनाव में सुधारों के लिए एक नया रास्ता खुलेगा। पिछले वर्ष 25 सितम्बर को भी उच्चतम न्यायालय ने चुनावों में सुधार हेतु एक फैसला दिया था जिसमें 6 बिन्दु थे। पहले बिंदु में संसद को यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का सुझाव दिया गया था कि आपराधिक मामलों का सामने करने वालों को राजनीति में प्रवेश करने से रोका जाये। दूसरे बिन्दु में यह निर्देशित किया गया था कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचित आयोग को देना होगा। तीसरे बिन्दु में निर्देशित किया गया था कि सभी राजनैतिक दलों को दागी उम्मीदवारों की सूची अपनी वैवसाईट पर प्रकाशित करनी होगी। चौथे बिन्दु में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को निर्वाचन आयोग को एक फार्म भरने का आदेश भी दिया गया था जिसमें उनका आपराधिक रिकॉर्ड और बड़े-बड़े अक्षरों में दर्ज किया जाना होगा। पांचवे बिन्दु में उच्चतम न्यायालय ने निर्देशित किया था कि उम्मीदवार अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में राजनीतिक दलों को भी पूरी सूचना उपलब्ध करायेगा। छठे बिन्दु में निर्देशित किया गया था कि सभी राजनैतिक दलों से जुड़े रिकॉर्ड का प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से विस्तृत प्रचार किया जाना चाहिए और यह प्रचार उम्मीदवार के फार्म भरने के बाद कम से कम तीन बार किये जाने का भी आदेश दिया गया था। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने इस टिप्पणियों के साथ-साथ अपने आदेश में चिंता जताते हुए यह भी कहा था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का आपराधिकरण चिंतित करने वाला है। उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि भारतीय लोकतंत्र की जीत को भ्रष्टाचार और राजनीति के आपराधिकरण के चलते खोखली हो रही है। उन्होंने संसद को भी आघा किया था कि भ्रष्टाचार की इस महामारी से निपटने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। चुनावों को अपराधियों से मुक्त कराने के लिए अनेकों कदम उठाए गए हैं। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। संसद में 33 प्रतिशत सांसदों पर गंभीर अपराध दर्ज है जिससे पहली नज़र में चिंतित होना स्वाभाविक भी है। चुनाव आयोग ने लगभग 15 वर्ष पहले सरकार को यह सुझाव भी दिया था कि 3 वर्ष या उससे ज्यादा सजा वाले मामले में यदि आरोप पत्र दाखिल हो जाएगा तो ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिए लेकिन किसी भी सरकार ने चुनाव आयोग के इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया। अब उच्चतम न्यायालय का जो डंडा चल पड़ा है उससे राजनीति में भ्रष्टाचार कम हो पाएगा ऐसी उम्मीद अवश्य जगी है।

अवलीन

तंत्र-मंत्रोपचार में सिद्धहस्त हैं शमशेर राणा