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बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का पहला साल

एक नेता के तौर पर राहुल गांधी राजनीति में 2003 में सक्रिय हुए। साथ में था नामी राजनीतिक खानदान से ताल्लुक रखना और परिवार की लम्बी राजनीतिक विरासत। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की चाटुकारिता को दूर रखकर उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी उठाने से संकोच किया। राहुल शुरू से ही अलग किस्म की राजनीति के पक्षधर थे। राहुल की सोच नीचे से उपर तक कांग्रेस का नव निर्माण करना जरूरी था क्योंकि पार्टी में कार्यकर्ता कम और नेता बहुत अधिक थे। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब राहुल पर कांग्रेस का नेतृत्व संभालने का दबाव रहा। लेकिन वह सत्ता के केन्द्र चाहे बने रहे हों लेकिन उन्होंने कोई भी सरकारी पद नहीं लिया। यह बात दूसरी थी कि पर्दे के पीछे उनकी एक अहम भूमिका थी। राहुल के सामने कई समस्यायें थी। एक तो कांग्रेस की यूपीए सरकार यदि रास्ता भटकी भी है तो वह अपनी सरकार पर हमला भी नहीं कर सकती थी।
राहुल को एक वर्ष पहले जब कांग्रेस की बागडोर संभाली पड़ी तो वह उस समय उपयुक्त नहीं था लेकिन राहुल ने इसे चेंलेज के रूप में स्वीकारा और विरोधियों के भारी विरोध के चलते अपने कदम डगमगाने नहीं दिये। गुजरात चुनाव में कांग्रेस यद्यपि सत्ता में नहीं आ सकी लेकिन भाजपा को भी प्रबल बहुमत नही मिला और गुजरात विधानसभा में भाजपा को भी दिन में तारे देखने को मज़बूर होना पड़ा। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा लेकिन राहुल ने जनता दल ;एसद्ध के साथ सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली और भाजपा की सरकार बनाने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पहली बार राहुल की राजनीतिक परिपक्वता दिखाई दी।
सीडब्ल्यु सी का गठन नये सिरे से किया और उसमें युवाओं के साथ-साथ अनुभवी नेताओं को भी शामिल किया गया। लेकिन इसमें इस बात का अवश्य ध्यान रखा गया कि यह सभी नेता राहुल के प्रति निष्ठावान रहें। इसके बाद राहुल ने सहयोगी राजनीतिक दलों की ओर हाथ बढ़ाया और गैर भाजपाई नेताओं से अपने व्यक्तिगत रिश्ते भी बनाए। उत्तर प्रदेश अखिलेश यादव, बिहार के तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के एम.के.स्तालिन से जहॉं इन्होंनें व्यक्तिगत रिश्ते बनाए वहीं राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के शरद पंवार और मार्क्सवादी कम्युनिष्ट की पार्टी के नेता सीमा राम यचुरी के साथ भी अच्छे सम्बन्ध बनाए।
राजस्थाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की जीत ने राहुल का ही नहीं समस्त कांग्रेस पार्टी का मनोबल काफी ऊॅंचा कर दिया है। और इसीर बात का फायदा उठाकर राहुल ने राफेल जहाजों की खरीद में कथित घोटाले को लेकर पी.एम. मोदी को ही भ्रष्टाचारी बताने में परहेज नहीं किया और न ही आजकल चाहे कोई रैली हो या साशेल मीडिया या फिर प्रेस वार्ता, या फिर संसद। सभी जगह वह मोदी को चोर चौकीदारी कहकर मोदी को असहज करने में कामयाब हुए वर्ष20014 में होने वाले लोक सभा चुनाव में एक नए कांग्रेस के मुखिया के तौर पर सामने आने में कामयाब हो ही गये हैं। राहुल का बतौर कांग्रेस अध्यक्ष बिताया गया एक साल कांग्रेस के लिए एक अच्छा संकेत माना जा सकता है।

पूनम गोयल

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक राजीव हुसैन भागवत