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कर्नाटक में फिर येदियुरप्पा का डंका

कर्नाटक में विधानसभा के 15 सीटों के उप चुनावों में भाजपा को 12 सीटें मिल गई है जिससे मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और मजबूत होकर उभरे हैं। गौरतलब है कि येदियुरप्पा ने कांग्रेस और जनता दल (एस ) के बागीयों को अपनी पार्टी में जोड़ लिया था और उनकी मूल पार्टियों से उन्हें बगावत आ गई थी। जिससे विधानसभा अध्यक्ष इन सभी विधायकों की सदस्यता को दलबदल कानून के तहत समाप्त कर दिया था तो उन 15 सीटों पर उप चुनाव जो हुए हैं उसमें भाजपा ने 12 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी सरकार को और स्थिरता दिलाने में कामयाबी हासिल की है। इसे यदि येदियुरप्पा का जीत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। आम तौर उप चुनाव के नतीजे राजनीति को ज्यादा प्रभावित नही करते मगर कर्नाटक विधानसभा के यह उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण थे क्योंकि यदि 15 सीटों में से जिनमें उप चुनाव हुआ है 6 से कम सीटें भाजपा को मिलती तो भाजपा की सरकार का गिरना तय था। लेकिन मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा सरकार ने 15 में से 12 सीटें हासिल कर अब अपने कार्यकाल के बचे साढ़े तीन साल के लिए एक स्थाई सरकार होने का दावा पेश कर दिया है। हालांकि कांग्रेस ने भी इस उपचुनाव में दो सीटें हासिल की हैं लेकिन 10 सीटें गंवा भी दी हैं इसलिए इससे कांग्रेस को एक बड़े झटके के रूप में देखा जा सकता है। जनता दल एस के पास तीन सीटें थी मगर वह एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी। वर्ष 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा 105 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। लेकिन 80 सीट जीतने वाली कांग्रेस और 37 सीट जीतने वाले जनता दल (एस ) ने गठजोड़ कर अपनी सरकार बनाने में तो कामयाबी हासिल कर ली लेकिन वह स्थायी सरकार देने में कामयाब नहीं रहे। ज्यादा सीटों वाली कांग्रेस को कम सीटों वाले मुख्यमंत्री एच.डी. कुमार स्वामी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट न होने पर अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी। महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद कर्नाटक के उप चुनाव में मिली जीत से भाजपा को एक नई ताकत मिली है और झारखंड में जो चुनाव हो रहे हैं उसमें भाजपा अपनी इस जीत को अवश्य बनाना चाहेगी। भाजपा ने यद्यपि अपने नेताओं की उम्र 75 वर्ष की तय सीमा के अन्दर बांध रखी है लेकिन येदियुरप्पा 76 वर्ष के हो चुके हें लेकिन उन्हें इस बंदिश से मुक्त रखा गया है। कर्नाटक के उप चुनाव में भाजपा ने हालांकि जीत हासिल कर ली है लेकिन इसके लिए उनकी काबलियत कम और विपक्षी दलों की नालायकी अधिक दिखाई देती है क्यांंकि भाजपा और जनता दल (एस ) सरकार बनाने के बावजूद अपनी सरकार को बचाने में नाकाम रहने के बावजूद कोई सबक न ले सके और इन उप चुनावों में भी दोनों ने सभी 15 सीटों पर अलग-अलग अपने उम्मीदवार खड़े किये जिससे भाजपा आसानी से 15 में से 12 सीटों पर विजयी होने में कामयाब रही। यदि विपक्षी एक जुट होते तो शायद भाजपा को जीत का स्वाद न मिलता और जोड़-तोड़ की राजनीति को भी झटका लगता।

समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में लगे हैं धनबीर सिंह चौहान (अध्यक्ष, कोली समाज पांवटा साहिब )

Making Failure Harder Deliver the results Than Transferring