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शीर्ष न्यायालय की अनूठी पहल

जामिया व एएमयू के छात्रों पर पुलिस की कार्यवाही के खिलाफ देशभर के विश्व विद्यालय में छात्र-छात्राओं के प्रदर्शनों का दौर जारी है। दिल्ली से लेकर लखनऊ, हैदराबाद, कलकत्ता, चेन्नई, कोच्चि समेत कई बडे़ शहरों में विश्व विद्यालयों और कॉलेज के छात्र सड़कों पर उतर आए हैं। विपक्षी भी छात्रों के इस गुस्से को और उग्र करने के लिए आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो दिल्ली में धरना भी दिया तो कलकत्ता में मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने रैली भी निकाली। उत्तर प्रदेश के मऊ में भी प्रदर्शन हुए और हिंसा भड़क गई और आगजनी और काफी तोड़-फोड़ की गई। कुछ लोगों ने जामिया और एएमयू छात्रों पर पुलिस कार्यवाही के खिलॉफ शीर्ष न्यायालय में भी याचिका दायर कर दी और पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही को गैर जरूरी बताते हुए उस पर रोक लगाने की मांग की।  लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक नई बात कहकर एक अनूठी पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर पुलिस की जायदती है तो उस पर न्यायालय अवश्य दखल देगा लेकिन जो हिंसा की जा रही है उस पर सुप्रीम कोर्ट कुछ भी नहीं करना चाहेगा। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक सम्पत्तियॉं नष्ट की जा रही हैं, बसों को जलाया जा रहा है तो इन हालातों में अदालत कोई भी निर्णय नहीं ले सकती इसलिए अगर सड़कों पर जाकर हिंसा होगी तो सुप्रीम कोर्ट आने की कोई जरूरत नहीं है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि पहले उच्चतम न्यायालय इस बात के लिए आश्वस्त होना चाहता है कि शांति कायम रहे लेकिन अगर छात्र-छात्राएं सड़कों पर ही जाना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में उनकी सुप्रीम कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं होगी लेकिन यदि शांति कायम हो जाती है तो न्यायालय हर मुद्दे पर ध्यान रखकर अपना निर्णय अवश्य देगा। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने साफ किया कि बसों को आग लगाने व अन्य सरकारी सम्पत्ति को नष्ट करने वाले कार्यों से परहेज किया जाना चाहिए तभी इस मामले पर कोई कार्यवाही उच्चतम न्यायालय द्वारा अमल लाई जायेगी क्योंकि जब तक शांति स्थापित नहीं होती तब तक न तो पुलिस को दोषी करार दिया जा सकता है और न ही छात्रों को । सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में यह भी कहना था कि विरोध के लिए छात्र कानून अपने हाथ में नहीं ले सकते और पुलिस और छात्र दोनों की ही तरफ से कुछ न कुछ अवश्य गलत हुआ है। इसलिए उपद्रव रूकने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे को सुनेगा।  सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान पर चिंता जताई है और तब तक सुनवाई न करने का निर्णय लिया है जब तक की उपद्रवी शांति न बहाल करें तथा सार्वजनिक सम्पत्ति का कोई भी नुकसान न करें। मेरे ख्याल से उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में जो निर्णय दिया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि विरोध करने का अधिकार तो लोकतंत्र में सभी को है लेकिन विरोध करने का यह तरीका जिसमें दंगा फैले और सार्वजनिक सम्पत्ति का भारी नुकसान हो उसे किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता।आज सभी राजनैतिक दल अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियॉं सेंकने में लगे हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट को हर मामले में अपनी राय देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

वर्ष : 23 अंक : 51

समाज के प्रति जागरूक व सवेदनशील महिला थी श्रीमती सीता देवी