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सिरमौर जिला के राजगढ़ में पहाड़ी व्यंजनों का लोग उठा रहे लुत्फ

राजगढ़ (पवन तोमर):-  देवभूमि हिमाचल की बात करें तो यहां के व्यंजन प्रदेश में ही नही अपितु देश व विदेशों से आने वाले आगंतुकों को भी खूब पसंद आते हैं। पहाड़ी व्यंजन सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं होते बल्कि यह लोगों की सेहत के लिए भी गुणकारी होते हैं। जो पहाड़ी व्यंजन सभी घरों व दुकानों में आम हुआ करते थे, उन्हें अब खास दुकानों में तलाशा जाता है। स्थानीय व्यंजनों को हमने आधुनिकता के चलते छोड़ दिया है और पश्चिम की नकल में बहुत सी ऐसी चीजे़ अपना ली है, जो स्वास्थ्य और सेहत के मामले में हमारे अनुकूल नही हैं।
हम जानते हैं कि एक ओर जहां स्थानीय व्यंजनों में कमी आई है। वहीं दूसरी ओर देसी-विदेशी व्यंजन अपनाए जा रहे हैं। जिससे हमारे स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। ऐसे में हमें विदेशी व्यंजनों के स्थान पर स्थानीय व्यंजनों का उपयोग अधिक करने की जरूरत है ताकि हम स्वस्थ रह सकें।
अब आप पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद जिला सिरमौर के उप-मण्डल राजगढ़ में शिरगुल चौक के समीप पहाड़ी खाना खज़ाना ढाबा में ले सकते हैं।
पहाड़ी व्यंजनों को तैयार कर लोगों को खिलाने का ख्याल राजगढ़ तहसील के कुलथ गांव के धर्मेन्द्र वर्मा के मन में तब आया। जब उन्होंने देखा कि स्थानीय व्यंजन घरों व बाजारों से गायब हो रहे हैं। उन्होंने निश्चय किया कि वह पारम्परिक स्थानीय व्यंजनों को बना कर लोगों तथा देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को परोसेंगे।
हिमाचल प्रदेश सरकार भी पर्यटन के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने पर विशेष बल दे रही है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्थानीय लजीज़ व्यंजनों, स्थानीय कलाकारों, संस्कृति तथा स्थानीय वेश-भूषा को प्रोत्साहित कर रोजगार के अतिरिक्त अवसर पैदा करने पर भी बल दिया जा रहा है ताकि प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र को और बढ़ावा दिया जा सके। इसी दिशा में पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिला सिरमौर के उपमंडल राजगढ़ में पहाडी़ खाना ख़जाना ढाबा पहाड़ी व्यंजन असकली, पूडे़ तथा सिडकु बना कर देश व विदेश के पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है।  
जिला भाषा अधिकारी सिरमौर अनिल हारटा ने बताया कि युवा पीढ़ी पारम्परिक स्थानीय व्यंजनों से विमुख हो रही है और पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही हैं। ऐसे में स्थानीय व्यंजनों को तैयार कर लोगों को परोसना स्थानीय व्यंजनों को संरक्षण प्रदान करने की दिशा में एक अच्छी पहल है। उन्होंने कहा कि पारम्परिक स्थानीय व्यंजन न केवल खाने में ही स्वाद होते हैं बल्कि यह पोष्टिकता से भरपूर होने के साथ-साथ स्वास्थ्र्यवर्धक भी होते हैं। इससे पहाड़ी व्यंजनों की ओर लोगों का रूझान भी बढे़गा तथा हमारे पारम्परिक व्यंजनों को प्रदेश व देश में एक अलग पहचान मिलेगी।
ढाबा संचालक धर्मेन्द्र वर्मा ने बताया कि मंगलवार, वीरवार तथा शनिवार को पहाड़ी व्यंजन बनाए जाते हैं। मंगलवार को असकली के साथ शक्कर घी, शहद व राब परोसे जाते हैं और वीरवार को पूड़े के साथ पुदीने की चटनी व खीर तथा शनिवार को सिडकु के साथ घी व दही परोसी जाती है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी खाने में प्रतिदिन लुशके भी बनाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके ढाबे में तीन रूपये प्रति असकली के साथ शक्कर, शहद, राब व दाल और 20 रूपये प्रति 30 एम.एल. घी, 10 रूपये प्रति पूड़े के साथ चटनी जबकि खीर हाफ प्लेट 20 रूपये व फुल प्लेट 40 रूपये तथा 20 रूपये प्रति सिड़कु, 20 रूपये प्रति 30 एम.एल. घी व 10 रूपये का दही और 10 रूपये प्रति लुशका ढाबे में आने वाले आगंतुकों को परोसा जा रहा है।
धर्मेन्द्र वर्मा ने बताया कि सप्ताह के अन्य दिनों में साधारण भोजन बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों, दुकानदारों, व्यापारियों तथा अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए टिफ़िन व्यवस्था भी शुरू की गई है। उन्होंने बताया कि प्रतिस्पर्धा के दौर में सभी लोगों को नौकरी मिलना संभव नहीं है चाहे वह सरकारी क्षेत्र में हो या फिर निजी क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति में हमें कोई भी स्वरोजगार के साधन अपनाना चाहिए, जिससे हम अपनी आजिविका चला सकें।
हर व्यक्ति को अपने जीवन में कोई न कोई माध्यम चुनना चाहिए। स्वरोजगार हमें केवल धन ही नहीं देता बल्कि ज्ञान और उन्नति का अवसर भी देता है। धर्मेन्द्र वर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने पहाड़ी व्यंजन ढाबे में अन्य 5 बेरोजगार लोगों को रोजगार भी दिया है, इस प्रकार हम अन्य स्वरोजगार के विभिन्न साधन अपनाकर अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान कर सकते हैं।
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