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अधिकारियो को अपमानित करना कहाँ तक उचित ?

जनमंच कार्यक्रम के तहत अधिकारियो/ कर्मचारियों को जलील करना कहाँ तक उचित है ।जबकि यह मंच लोगों की समस्याओं को सुनने और उनका समय पर निपटारा करने के लिए जयराम सरकार ने बनाया था लेकिन इस मंच के माध्यम से समस्याएं कम व् अधिकारियो को अधिक प्रताड़ित करना क्या सही है ।हाल ही में जिला सिरमौर के अम्बोया में एक जनमंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे हिमाचल प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने एक प्रथम श्रेणी सरकारी राजपत्रित अधिकारी को बिना वजह फटकार लगा दी ।इन कार्यक्रमों में नेता लोग अधिकारियो को धमका रहे है जिससे उनको लज़्ज़ित होना पढ रहा है ।दरअसल पास के एक गाव् के लोगो ने मुख्यमंत्री शिकायत निवारण पोर्टल पर बिजली लाइन से सवन्धित समस्या का समाधान करने को लेकर एक शिकायत भेजी थी जिसकी इन्क्वायरी बिजली बोर्ड के पास आयी थी ।बोर्ड उस पर काम कर रहा था लेकिन इसी बीच स्थानीय विधायक ने राजनैतिक हस्तक्षेप किया और और वह काम वही रुकवा दिया ।इस अधिकारी की गलती मात्र इतनी थी की उसने उपाध्यक्ष के सामने सही बात राखी और स्थानीय विधायक के हस्तक्षेप की बात भी कही ।अधिकारियो को कोबरा साप कहना भाषा की मर्यादा का हनन है ,वह एक सवेधानिक पद पर आसीन है और मंच से नागरिकता कानून जैसे मुद्दों पर भाषण देकर उन्होंने अपने पद की गरिमा को ठेस पहुंचे है ।उन्हें केवल मात्रा जनता की समस्याओं का मौके पर निपटारा करने को ही प्राथमिकता देनी चाहिए थी और किसी भी सविधान में यह नहीं लिखा गया है की कोई भी राजनेता किसी अधिकारी को अपशब्द कहकर अपमानित करे ।अधिकारी तथा कर्मचारी भी इस समाज का अभिन अंग है और उनकी भी अपनी एक गरिमा तथा इज़्ज़त होती है ।वह भी इस देश के नागरिक और वोटर हैं ,उनके प्रति आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करना सर्वथा अनुचित है ।जनता के सामने बेइज़्ज़त होने से अधिकारियो का आत्मविश्वास तथा मनोबल को ठेस पहुंचती है ।विधानसभा उपाध्यक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए था की वह एक प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी को प्रताड़ित कर रहे है ऐसे करने से न तो उनका सर गर्व से ऊँचा हुआ है और न ही ही ऐसे राजनेताओं की कहीं वाहवाही ही होती है ।
जयराम सरकार को अपने नेताओं पर अंकुश लगाने की आवशयकता है चूँकि यह कोई पहला ऐसा मामला नहीं है जब राजनीतिज्ञों द्वारा किसी अधिकारी को जनमंच कार्यक्रम के माध्यम से प्रताड़ित न किया गया हो ।अधिकारियो को भी लामबंद होना पड़ेगा और जो नेता अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए उनका सहारा लेते है उसके खिलाफ एक मत से आवाज़ बुलंद करनी होगी तथा सरकार को भी यह जताना होगा की वह अपने पद से बंधे हुए है वह किसी के निजी नौकर न होकर सरकार के कर्मचारी है और सरकारी कार्यो को निष्ठांपूर्ण करने के लिए ही प्रतिबद्ध है ।बिना बजट के कोई भी सरकारी कर्मचारी कैसे काम क्र सकता है यह तो एक विचारणीय प्रश्न है ।अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपना दायितब बखूबी नहीं निभा पा रहा है तो उसे दण्डित करने के लिए सरकार के पास और भी हथियार है और उन हथियारों का प्रयोग करना चाहिए और अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए ।

जानवरों से बहुत लगाव रखती थी डॉ. प्रियंका रेड्डी – पशु चिकित्सक ,हैदराबाद

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