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क्या निवेशकों को रिझा पायेंगे जयराम

हाल ही में हुई कैबिनेट मीटिंग में सरकार ने जो पहली विश्व स्तरीय इन्वेस्टर मीट को हरी झंडी भेजी है उससे क्या वास्तव में सरकार निवेशकों को हिमाचल में ला पायेगी इसमें संशय अधिक दिखाई दे रहा है। क्योंकि आजतक सरकार हिमाचल में निवेशकों को रिझाने के लिए आधारभूत सुविधायें भी उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है। यही नहीं उद्योग के लिए चाहे भूमि खरीद का मामला हो या फिर अन्य विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र, सभी मसले जटिल से जटिल से होते जा रहे हैं। उद्योग लगाना तो दूर उद्योग लगाने के लिए मंजूरी में ही बरसों-बरस लग जाते हैं जिससे परेशान व हतोत्साहित होकर आने वाला निवेशक अपना धैर्य खो बैठता है और चुपचाप वापस भागने की तैयारी में लग जाता है। वर्ष 2003 में यदि केन्द्र सरकार उद्योगों को विशेष सहुलियतें न देती तो हिमाचल में जो थोड़ा बहुत औद्योगिकीकरण हो पाया है वह भी न हो पाता।
कैबिनेट की इस बैठक में तय हुआ है कि अगले वर्ष 10 व 11 जून को मैगा इंवेस्टर मीट कराई जायेगी। बड़े उद्योग को हिमाचल में लाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी 2-3 रोड़ शो किये जायेंगे। यही नहीं सरकार का इरादा तो दिल्ली में 50 देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन भी कराने का है जिसमें निवेशकांे के लिए सूबे में चलाई जा रही योजना के बारे में बताया जाएगा। सरकार का इरादा विभिन्न विभागों में 85 हजार करोड़ रूपये की निवेश क्षमता से संबन्धित प्रस्ताव पर सहमति हुई है। यही नहीं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों के लिए नई नीति बनाने व भारतीय उद्योग संघ को राष्ट्रीय भागीदार बनाने का भी फैसला लिया गया है। अगले वर्ष होने वाले इस दो दिवसीय प्रस्तावित सम्मेलन में शीर्ष व्यवसायियों के अलावा विदेशी प्रतिनिधियों के शामिल होने की भी उम्मीद है। यही नहीं केन्द्र के राज्य मंत्री और सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच उसमें भागीदारी का प्रस्ताव है। ऊर्जा क्षेत्र में सरकार 30 हजार करोड़ का निवेश चाहती है। निर्माण में 15 हजार करोड़ व पर्यटन में 10 हजार करोड़ के लक्ष्य के साथ-साथ कृषि और आई.टी.कौशल विकास और आवास नियरस्टेट स्वास्थ्य सहित प्रत्येक में 5 हजार करोड़ तथा अधोसंरचना व लोग निर्माण विभाग 2 हजार करोड़ का निवेश शामिल किया गया है।
दूसरी ओर निवेश्कों की समस्याओं के प्रति सरकार पूरी तरह उदासीन है और आगे दौड़- पीछे छोड़़ की कहावत को चरितार्थ कर रही है।
उदाहरण के तौर पर सरकार ने मुख्यमंत्री स्वावलम्बन योजना के तहत प्रदेश के 18 से 35 साल उम्र के बेरोजगारों के लिए जो मुख्यमंत्री स्वाबलम्बन योजना के नाम से योजना चलाई है जिसमें हिमाचली युवक/युवतियों को उद्योग में लगने वाली 40 लाख रूपये तक की मशीनें 25 से 30 प्रतिशत तक अनुदान दिये जाने की व्यवस्था के साथ-साथ बैंक मंे लगने वाले )ण उपादान की भी व्यवस्था है। लेकिन इसके बावजूद इन बेरोजगार युवकोें को जिस तरह लाल फीता शाही का सामना करना पड़ रहा है और बैंकों के चक्कर-पर-चक्कर काटने पड़ रहे हैं और वह अपना उद्योग स्थापित ही नहीं कर पा रहे हैं तो उनकी मूल समस्या में गहराई में जाने की आवश्यकता है। सरकार को सबसे पहले तो इसी बात पर नजर रखनी चाहिए कि मुख्यमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना में जिन-जिन हिमाचली बेरोजगारों के प्रोजेक्ट जिला स्तरीय अधिकारियों द्वारा स्वीकृत किए गए हैं उनमें से वास्तव में कितने उद्योगों की स्वीकृत राशि उपभोक्ताओं तक पहंुॅच पाई है , तभी वास्तविकता का पता चल पायेगा कि सरकार की योजना धरातल पर उतरती भी हैं या फिर कागज़ों में सिमट कर रह जाती है। सरकार को उद्योग मित्रवत् माहौल पैदा करना होगा तभी निवेशक आकर्षत होंगे वरना जो छोटे बहुत निवेशक हैं भी, कहीं वह भी अपना बोरिया बिस्तर लेकर दूसरे राज्यों की और कूच न कर लेें।

डाॅ. रितिका नागियाॅं लोगों को कम दाम पर बेहतर सुविधा देने के लिए कृतसंकल्प हैं

आक्शी