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नाम बदलने के क्या फायदे

सरकार बदलते ही शहरों और अन्य योजनाओं के नाम बदलने की परम्परा काफी पुरानी है। उत्तर प्रदेश में मायावती जब सत्ता में आई थी तो उन्होंने अनेक जिलों के नाम बदल दिये थे और अनेक योजनाओं के नाम बदल कर बहुजन समाज के नाम पर रख दिये थे। अब प्रदेश में भाजपा की सरकार आने से योगी जी भी शहरों समेत कई योजनाओं के नाम भी बदलने में लगे हैं। यह बात दूसरी है कि जिलों के नाम बदलने की रणनीति से यूपी की भाजपा सरकार पार्टी की हिन्दुत्व एजेंडा आगे कर रही है लेकिन इसमें भी अनेकों पेंच हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद विधानसभा सीट पर 21 वर्ष बाद भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराया है। जबकि इस क्षेत्र को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माना जाता रहा है और मुस्लिमों का सबसे बड़ा मदरसा भी इसी स्थान पर है। भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक ब्रजेश सिंह ने सरकार के गठन से पहले ही देवबंद का नाम बदलकर देवब्रंद करने की जो बात कही लेकिन सरकार चूंकि अस्तित्व में आए कुछ ही दिन हुए थे इसलिए नव निर्वाचित विधायक भी इस सलाह को योगी सरकार ने तुरन्त नहीं माना।
लेकिन 6 माह बाद भाजपा सरकार ने 2019 में होने वाले इलाहाबाद में अर्धकुंभ का नाम बदलकर कुंभ व फिर कुछ दिन बाद इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया । जिससे योगी ने एक तीर से दो निशाने कर दिये। एक तो अर्धकुंभ से कुंभ की घोषणा करने से संतों को संतुष्ट कर दिया गया वहीं हिन्दुत्व के एजेंडें पर चलने की कवायद की। यही नहीं 6 नवम्बर को अयोध्या में योगी दिपोत्सव मनाने पहुॅंचे। उच्चतम न्यायालय से राम मन्दिर, बाबरी मस्ज़िद विवाद के फैंसले में देरी होने से भाजपा के सहयोगी संगठन अध्यादेश के जरिए सरकार पर मन्दिर बनाने के लिए जोर डालने लगे तो योगी ने कैबिनेट की 13 नवम्बर को हुई बैठक में फैज़ाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि जिले का नाम बदलने से सरकारी खजाने पर काफी भार पड़ता है क्योंकि अफसरों की नाम पट्टिकाएं, विभागों के नाम, प्रवेश द्वार, साईनबोर्ड, मोहर, विभागीय स्टेशनरी आदि बदलने में करोड़ों रूपये खर्च हो जाते हैं और इसे भी सरकार द्वारा की जा रही फिजुलखर्ची ही कहा जायेगा।
यही नहीं माईल स्टोनों पर भी काफी खर्चा आएगा। नाम बदलने के पीछे सरकार की क्या मंशा है यह कई निर्णयों से साफ हो जाती है। अखिलेश सरकार के अस्तित्व में आने से विभिन्न योजनाएं समाजवाद के नाम पर जो शुरू हुई थी उससे भी भाजपा सरकार को निपटना है। इसलिए सभी योजनाओं से एक-एक कर समाजवादी शब्द हटाया जा रहा है। क्रिकेट स्टेडियम, हथकरघा पुरस्कार, बीमा योजना, आवास योजना, हवाई अड्डा, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, हवाई अड्डा, स्वरोजगार योजना, नगर निगम आदि के नाम बदलने से सरकार पूर्व सरकारों द्वारा चलाए गए नामों को खत्म करने पर तुली है वहीं नये नाम रखकर अपनी वाह-वाही कराना चाहती हैं लेकिन जो फिजूलखर्ची हो रही है उसका हिसाब जनता को कैसे दिया जा सकता है यह एक सोचने का विषय है।

वान्या

डाॅ. रितिका नागियाॅं लोगों को कम दाम पर बेहतर सुविधा देने के लिए कृतसंकल्प हैं