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कोरोना काल में प्राकृतिक उत्पादों के सेवन से बढ़ाएं प्रतिरोधक क्षमता

  हिमवंती मीडिया/चम्बा
चम्बा जिले में आतमा परियोजना के अंर्तगत “प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना” के तहत दस हजार से अघिक किसान प्राकृतिक खेती से जुड चुके हैं। जिसमें कि लगभग 935  हैक्टेयर भूमि  में विभिन्न फसलों की मिश्रित खेती के द्वारा पैदावार ली जा रही है, और यह योजना किसानों के लिए  वरदान साबित हो रही है ।
परियोजना निदेशक (आतमा )  दिनेश कुमार ने बताया कि  जिला में प्राकृतिक खेती के अंतर्गत  खरीफ में  मक्की,फ्रासवीन,माश,राजमाश,कुल्थी, खीरा,घीया,करेला,बेंगन,टमाटर और लोभिया  इत्यादि प्राकृतिक विघि से उगाई जा रही है । जिसमें रासायनिक खादों व रासायनिक कीटनाशकों का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि प्राकृतिक खेती हमारे आसपास के वातावरण, मिटटी व जल सत्रोतों  को शुद्व रखने में सहायक  हो रही है ।  मिटटी में लाभदायक देसी केंचुए और सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढने से मिटटृी की ऊपजाऊ शक्ति बढती है। इस विधि से फसलों की लागत भी  बहुत ही कम आती है और पैदावार लगभग दोगुणा हो जाती है।
 उन्होंने बताया कि  मिश्रित खेती द्वारा अगर एक फसल को किसी भी  प्रकार का नुकसान पंहुचता है तो इसकी भरपाई दूसरी सह फसलों से आसानी से हो जाती है क्योंकि  इन फसलों में आच्छादन द्वारा भूमी में सूखे के मौसम में भी नमी बनी रहती है इसलिए पौधों में पानी की कमी नहीं होती और सूखा पडने पर भी भरपूर फसल ली जा सकती है।
जिला चम्बा में वर्तमान में  लगभग 11 हजार किसान ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती‘ का प्रशिक्षण ले चुके  है और दस हजार से अधिक किसान अपने खेतों  में इस विधि द्वारा खेती करके लाभ प्राप्त कर रहे है। यह खेती चूंकि  देसी गाय व इसके गोमूत्र पर ही आधारित है ।
 आतमा परियोजना चम्बा से  प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को एक देसी गाय खरीदने पर पच्चीस हजार रुपये उपदान दे रही है।  इसके साथ गाय के यातायात खर्च के लिए पांच हजार रुपये व मंण्डी शुल्क दो हजार रुपये अलग से दिया जा रहा है। गौमूत्र इक्टठा करने के लिए गऊशाला को पक्का करने व गडडा करने के लिए आठ हजार रुपये ए विभिन्न आदानों को बनाने व उनके संग्रहण के लिए ड्रम पर 2250 रुपये और संसाधन भंडार खोलने के लिए दस हजार रुपये ऊपदान प्रति परिवार प्रदान किए जा रहे है।
 परियोजना निदेशक ने बताया की चम्बा जिला में इस वर्ष इस योजना  के अंतगर्त 132 .34  लाख रुपये व्यय किए जा रहेेे हैं ।   जिसमें किसानों के लिए प्रशिक्षण शिविर, खेत प्रर्दशन ,फार्म स्कूल,आभाषी कार्यशाला, प्रशिक्षित किसानों द्वारा तकनीक विस्तार के अतिरिक्त खाद्यय  सुरक्षा ग्रुप का गठन  भी सुनिश्चित बनाया जा रहा है, किसानों को प्राकृतिक आदान बनाने,  भण्डारन करने व देसी गाय की खरीद पर भी सहायता उपलब्ध्  करवाने का प्रावधान किया गया है।
 उन्होंने बताया कि प्राकतिक खेती से उत्पादित खाद्यान, फल व सब्जियां पोषणयुक्त तथा जहरमुक्त होती हैं जिसका मनुष्य के शरीर पर सकारात्मक असर होता है और प्रतिरोधक क्षमता बढती है। ऐसे समय में जब सारा समाज कोरोना से जूझ रहा है वहीं प्राकृतिक खेती से उत्पादित उत्पाद का सेवन करने से लोग कोरोना जैसी महामारी से बच सकते हैं। चूंकि हमारा भोजन ही सभी बिमारियों से लडने की एकमात्र दवा है ।
 परियोजना निदेशक ने  किसान भाईयों से अनुरोध है कि अधिक से अधिक  प्राकृतिक  खेती को अपनाये ताकि सभी लोग प्राकृतिक उत्पादों का सेवन करके अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर अच्छी सेहत व कोरोना मुक्त जीवन अपना सकें।

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