in

चोर-चोर मोसैरे भाई

चुनावों के लिए राजनीतिक पार्टियों को पैसा कहाॅं से मिलता है। यह चर्चा बरसों से उठती आ रही है। लेकिन वर्तमान सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में चुनावी चंदा भी एक अपारदर्शी और काले धंधे से जुड़ी कवायद बना हुआ है। अभी हाल ही में जो चुनावों की बात की गई है वह सब बेमानी दिखाई दे रही है। हालांकि सरकार देश में राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में तीन बड़े बदलाव ला चुकी है जिनमें राजनैतिक पाटियाॅं विदेशी चंदा भी ले सकती हैं वहीं कोई भी कम्पनी कितनी भी रकम किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदे के रूप में दे सकती है। यही नहीं कोई भी व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह या कम्पनी गुप्त रूप से चुनावी ब्रांन्ड के जरिए किसी भी पार्टी को चंदा दे सकती है।
ये तीनों ही बदलाव पारदर्शिता लाने के बजाये चुनावों की प्रक्रिया को ओर भी बेचिदा बना चुके हैं। मगर यह बात अच्छी है कि गुप्त नकद चंदे की सीमा 20 हजार रूपये से ह्रटाकर 2 हजार रूपये तक कर दी गई है लेकिन इससे भी कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि पाटियाॅं 2 हजार रूपये के चंदे को 10 गुणा अधिक दिखाती है। सरकार के इन तथाकथित सुधारों से देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों को फायदा ही हुआ है।
चुनावों में विदेशी चदां दुनियाभर में विवाद का विषय रहा है। चुनावी फंड में बड़े घरानो के चंदे आम तौर पर क्षेत्रिय दल और व्यक्तिगत सम्बन्धों पर ही दिये जाते हैं और वह भी अधिकतर नकद या अन्य सामग्री के तौर पर। दूसरे किसी भी जांच एजंेसी की पकड़ में वह नहीं आ सकते। आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष 10 राजनीतिक दलों को कुल 365 करोड़ रूपये चंदे के तौर पर मिला है जिनमेे से लगभग 70 प्रतिशत यानी 251 करोड़ का चंदा भाजपा को ही मिल रहा है। यही नही भाजपा चुनाव पार्टी ने चुनावो में 130 करोड़ रूपये खर्च किये जाना बताया जा रहा है जबकि 70 प्रतिशत कांग्रेस को भी 72 करोड़ रूपये का चंादा मिला है और इन दोनों चुनावों में काफी पैसा बचाया भी गया।
चुनावांे के लिए सभी राजैतिजक पार्टिया स्वैच्छिक कूपन व साहित्य बेचकर तथा सदस्यता अभियान चलाकार कर्बोरेट चंदे से धन जुटाती हैं वहीं स्थानीय लोगों को प्रत्याशी नकद या चुनाव के लिए अन्य साधन उपलब्ध कराती है। अब कम्पनियां चुनाव बाॅंड या चुनाव ट्रस्ट के माध्यम से सीधे चंदा दे सकती है। इसमें दोनों कम्पनियों को यह बताना जरूरी है कि उन्होंने चंदा किस पार्टी को दिया है और राजनीतिक पाटिर्याें को भी यह बताना जरूरी नहीं है कि यह चंदा किस पार्टी से लिया गया है।
चुनावों में राजनीतिक पार्टियों द्वारा जो अक्सर खर्चा किया जाता उनमें चुनावी रैली में खाने व ठहरने पर खर्चा के साथ-साथ प्रीटिंग मीडिया, बिजिटर मीडिया के दौनारे चुनाव के दौरान प्रत्याशी नकद महंगे उपहार आदि भी देते हैं तथा चुनाव आयोग की आंखों में धुल झोंकने के लिए नये -नये तरीके भी ढंूढ रहे हैं जैसे लोगों के बिल भरना, कूपन देना आदि शामिल हैं

रणजीत सिंह बेदी। (नायब तहसीलदार)

समाज के दबे-कुचलों की मदद करना पसन्द करते हैं मधुकर डोगरी